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कातन्त्रव्याकरणम्
पञ्चम पाद के १८ सूत्रों में प्रधानतया विसर्ग-सन्धि वर्णित है । जैसे विसर्ग को श-ष-स-जिह्वामूलीय-उपध्मानीय आदि आदेश किए गए हैं। 'कश्चरति, कश्छादयति' में विसर्ग को शकारादेश होता है | पाणिनि ने विसर्ग के स्थान में सकार तथा सकार के स्थान में श्चुत्वद्वारा शकारादेश करके उक्त प्रयोगों की सिद्धि दिखाई है । 'कष्टीकते – कष्ठकारेण' इत्यादि में विसर्ग को मूर्धन्य '' आदेश किया गया है, पाणिनीय प्रक्रिया के अनुसार विसर्ग के स्थान में सकार तथा उस सकार को षकारादेश होता है । 'कस्तरति - कस्थुडति' प्रयोगों को विसर्ग के स्थान में सकारादेश करके सिद्ध किया गया है । यहाँ की पाणिनीय एवं कातन्त्रीय प्रक्रिया समान है | ‘कारस्कर' आदि शब्दों की सिद्धि के लिए कातन्त्रकार ने सूत्र नहीं बनाया है | उनकी सिद्धि अन्य लोकप्रसिद्ध संज्ञाशब्दों की तरह समझ लेनी चाहिए | पाणिनि ने एतदर्थ १५ सूत्र (६।१।१४३-५७) बनाए हैं । ‘क x करोति, क x खनति' इत्यादि में विसर्ग को जिह्वामूलीय आदेश होता है | कातन्त्र- व्याकरण में जिह्वामूलीय की आकृति वज्र की तरह होती है (द्र० - कात० १।१।१७) । पाणिनि ने न तो जिह्वामूलीय संज्ञा ही की है और न विधिसूत्र “कुप्वो कX पौ च" (८।३।३७) में उसका पाठ ही किया है । उन्होंने इस स्थल में अर्ध विसर्गसदृश आकृतिवाले वर्ण का विधान किया है । व्याख्याकारों ने उस अर्धविसर्गसदृश वर्ण को जिह्वामूलीय नाम दिया है । इससे स्पष्ट है कि पाणिनीय निर्देश विशेष व्याख्यागम्य है, जबकि कातन्त्रीय निर्देश अत्यन्त सरल है । ‘क ७ पचति, क ७ फलति' इत्यादि में विसर्ग को उपध्मानीय आदेश होता है।
कातन्त्रव्याकरण में उपध्मानीय की आकृति गजकुम्भ की तरह बताई गई है । गजकुम्भ की आकृतियाँ अनेक देखी जाती हैं -, M , . ,७,00। पाणिनीय व्याख्याकारों ने उपध्मानीय को अर्धविसर्ग के सदृश आकृतिवाला बताया है | पाणिनि ने उपध्मानीय शब्द का प्रयोग नहीं किया है और न ही इसका पाठ वर्णसमाम्नाय में देखा जाता है, परन्तु व्यवहार किए जाने के कारण अनुस्वार-विसर्ग के साथ जिह्वामूलीय-उपध्मानीय को भी अयोगवाह माना जाता है । 'कश्शेते, कष्षण्डः, कस्साधुः' में विसर्ग को पररूप आदेश निर्दिष्ट है । पाणिनि ने पहले विसर्ग को सकारादेश करके तब श्चुत्व-ष्टुत्व किया है | इस प्रकार कातन्त्रकार का निर्देश लाघवबोधक है | कातन्त्र के प्रकृत सूत्र "शे षे सेवा वा पररूपम्" (१।५।६) को लक्ष्य करके एक प्रश्नोत्तर - संवाद भी प्रचलित है -