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कातन्त्रव्याकरणम्
विश्वनाथपदद्वन्द्वं नत्वा गुरुपदं मया । तन्यते हरिरामेण व्याख्यासारः समासतः ॥ ३. बालबोधिनी
स्तुतिकुसुमाञ्जलिकार जगधरभट्ट ने अपने पुत्र यशोधर के अध्ययनार्थ कातन्त्रसूत्रों पर इस वृत्ति-ग्रन्थ को लिखा था । यह वृत्ति कश्मीर में प्रचलित रही है तथा सरल और संक्षिप्त भी है । अन्त में कहा गया है -
इति मितमतिबालबोधनार्थं परिहृतवक्रपथैर्मया
वचोभिः ।
लघुललितपदा व्यधायि वृत्तिर्मृदु सरला खलु बालबोधिनीयम् ॥ जगद्धरभट्ट का लघुललितवृत्ति नामक एक अन्य ग्रन्थ भी प्राप्त होता है, जो उक्त बालबोधिनी वृत्ति से भिन्न है । बालबोधिनी पर राजानक शितिकण्ठ ने १४७८ ई० में न्यास की रचना की थी ।
४. कातन्त्रलघुवृत्ति
इसके रचयिता छुच्छुकभट्ट हैं । इसका ३७८ पत्रों का एक देवनागरीलिपिबद्ध हस्तलेख दिल्ली के प्राचीनग्रन्थ संग्रहालय में सुरक्षित है । १९ वीं शताब्दी के अन्त तक कश्मीर की प्रत्येक पाठशाला में इसका अध्ययन होता था ।
५. कातन्त्रकौमुदी
कृपालु कोकिल गुरु नामक आचार्य ने इसे लिखा था । सुकुमारमति - बालकों को सरलता से व्याकरणज्ञानार्थ इसकी रचना की गई थी ।
कुछ अन्य वृत्तियों के नाम इस प्रकार हैं
१. बालावबोधवृत्ति (मेरुतुङ्गसूरि ) । २. कालापप्रक्रिया (आचार्य बलदेव)। ४. चतुष्कव्यवहारदुण्डिका ( धनप्रभसूरि ) । ६. बालावबोधवृत्ति (हरिकलशोपाध्याय) ।
३. कातन्त्रमन्त्रप्रकाश ( कर्मधर ) । ५. कातन्त्रदीपक (मुनि श्रीहर्ष ) । ७. क्रियाकलाप (विजयानन्द) । ८. क्रियाकलाप (जिनदेवसूरि) । ९. कातन्त्ररूपमाला (वादिपर्वतवज्र भावसेन) । १०. कातन्त्रवाक्यविस्तर (आचार्य राम) । ११. कातन्त्रप्रदीप ( पुण्डरीकाक्ष विद्यासागर ) ।