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प्रास्ताविकम्
४३ ३. परिभाषासूत्रों से अतिरिक्त कातन्त्रव्याकरण में कुछ परिभाषाएँ भी हैं । ६५ परिभाषाओं की व्याख्या दुर्गसिंह ने तथा ६२ परिभाषाओं की भावशर्मा ने की है। कवीन्दु जयदेव ने भी ५५ परिभाषाओं की व्याख्या करने का संकल्प किया था | प्रतापरुद्रीयपुर की यात्रा करते हुए उन्होंने इस संकल्प को पूरा भी कर लिया | परिभाषासंग्रह में ६७ कातन्त्रपरिभाषासूत्र,२९ बलाबलसूत्र तथा ११८ कालापपरिभाषासूत्र भी दिए गए हैं। इनके रचयिता का नाम उल्लिखित नहीं है |
४. हस्तलेखों में ११ कातन्त्रशिक्षासूत्र मिलते हैं । रचयिता का नाम नहीं दिया गया है । इसमें अवर्ण का केवल कण्ठस्थान ही नहीं, किन्तु मुखस्थित सभी स्थान बताए गए हैं – “अवर्णः सर्वमुखस्थानमित्येके"।
५. कातन्त्र के सन्धिप्रकरण में ५ पाद तथा ७९ सूत्र हैं। इनके विकृतरूप राजस्थान की प्रारम्भिक पाठशालाओं में पढ़ाए जाते रहे हैं । इन्हें सीदी पाटी कहा जाता है। जिसका मूलरूप सिद्धपाठ है |
इनके अतिरिक्त विदित ग्रन्थ इस प्रकार हैं
१.कातन्त्रोपसर्गसूत्र (पुरुषोत्तमदेव)।२. कलापव्याकरणोत्पत्तिप्रस्ताव (वनमाली)। ३. पादप्रकरणसङ्गति (जोगराज)। ४. दशबलकारिका (दुर्ग)। ५. बालशिक्षाव्याकरण (ठक्कुर संग्रामसिंह)। ६. शब्दरत्न (जनार्दनशर्मा)। ७. गान्धर्वकलापव्याकरण (सौरीन्द्रमोहन ठाकुर)। ८. कलापदीपिका = कलापव्याकरणानुसारिणी भट्टिकाव्यटीका (पुण्डरीकाक्ष विद्यासागर)।
शब्दरूप कल्पद्रुम, रत्नबोध आदि कुछ ग्रन्थ कलापव्याकरणानुसारी रचे गए हैं | The Aindra School of sanskrit Grammarians में भी कातन्त्रव्याकरण पर विस्तार से चर्चा है । तिब्बतीभाषा में इस पर कम से कम २३ टीकाएँ अवश्य लिखी गई हैं।
"Sanskrit hand Schriften Aus Den Turfanbunden" Wiesbaden, West Germany, के १-५ खण्डों में प्रकाशित जर्मनी में विद्यमान तुर्फान-हस्तलेखों के विवरण में निम्नाङ्कित प्रविष्टियाँ कातन्त्र से संबद्ध हैं -
1. Grammar related to the katantra 1.633; 2. Katantra 1.64, 246, 489, 534, 644; 3. Katantra Kat. Gr. 1.208.