Book Title: Katantra Vyakaranam Part 01
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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३२४
कातन्नव्याकरणम्
२३२
२३९
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१२
२३७
२३२
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२३९ २६४, २८२
२६४
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२६६
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१२८. पित्र्यम् १२९. पुंभ्याम् १३०. पुना रात्रिः १३१. पुम्भ्याम् १३२. प्रशाञ्च्शयनम् १३३. प्रशाञ्छयनम् १३४. प्रशाञ्शयनम् १३५. भगो व्रज १३६. भवाँल्लिखति १३७. भवाँल्लुनाति १३८. भवांश्चरति १३९. भवांश्च्यवते १४०. भवांश्छादयति १४१. भवांश्छ्यति १४२. भवांप्टीकते १४३. भवांष्ठकारेण १४४. भवांस्तरति १४५. भवांस्थुडति १४६. भवाञ्च्शूरः
१२८
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१७५ । १५०. भवाकारेण २४५ १५१. भवाण्डीनम् २८४ : १५२. भवाण्डौकते
१५३. भवाशूरः १५४. भवाञ्ोते
१५५. भवाण्णकारेण २३७ १५६. भो अत्र
१५७. भोयत्र | १५८. भो यासि १५९. मधूट न् १६०. मध्वत्र १६१. माले इने १६२. रावेन्द्री १६३. लनुदन्धः १६४. लवणम् १६५. लाकृतिः १६६. लूकारेण १६७. वधूढम् १६८. वध्वासनम्
| १६९. वाक्टरः २३२ | १७०. वाक्लक्ष्णः २३२ । १७१. वाक्शूरः
२२४ ।
१८८
२२४१
१५८
१५४
१५८
१५४
१२८ १२८ १५२
१४७. भवाञ्छूर:
२०४
२०४
१४८. भवाञ्जयति १४९. भवाञ्झासयति
२०४

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