Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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पढमसमयप्पहुडि दिज्जमाणदिस्समाणपदेसग्गस्स सेढिपरूवणं कादूण संपहि एत्तो उवरि पुणे वि सुहुमसांपराइयविसयमेव परूवणाविसेसमादोदोप्पहुडि पबंधेण परूवेमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ
__* लोभस्स विदियकिहि वेदयमाणस्स जा पढमहिदी तिस्से पढमहिदीए जाव तिणि आवलियारो सेसाओ ताव लोभस्स विदियकिट्टीदो लोभस्स तदियकिट्टीए संछन्भदि पदेसग्गं, तेण परं ण संछन्भदि, सव्वं सुहुमसांपराइयकिट्टीसु, संछन्भदि ।
६ १३ सुहुमसांपराइयगुणट्ठाणविसयाए परूवणाए कीरमाणाए अणियट्टिबादरसांपराइयविसयो एसो अत्थपरामरसो कधमसंबद्धो ण होज्ज त्ति ण आसंकणिज्ज, अणियट्टिकरणचरिमसंधीए पुन्वमपरूविदत्थविवेसस्स संभालणं कादण पच्छा सुहुमसांपराइयविसयपरूपणाए कीरमाणाए मंदबुद्धीणं पि सुहावगमो होदि त्ति एदेणाभिप्पाएण तहा परूवणादो ।
१४ संपहि एदस्स सुत्तस्सत्थे भण्णमाणे कि पुण कारणं लोभविदियसंगहकिट्टीवेदगपढमहिदीए तिसु आवलियासु सेसासु तत्तो पदेसग्गं तदियकिट्टीए सका
लेकर दिये जानेवाले और दिखनेवाले प्रदेशजकी श्रेणिप्ररूपणा करके अब इससे आगे फिर भी सूक्ष्मसाम्परायिकसम्बन्धी ही प्ररूपणाविशेषका प्रारम्भसे लेकर प्रबन्ध द्वारा प्ररूपणा करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं।
* लोभसंज्वलनकी दूसरी कृष्टिका बेदन करनेवाले जीवके जो प्रथम स्थिति होती है उस प्रथम स्थितिकी जब तक तीन आवलियाँ शेष रहती हैं तब तक लोभकी दूसरी कृष्टिसे लोमकी तीसरी कृष्टिमें प्रदेशपुंजको संक्रमित करता है। उसके पश्चात् प्रदेशपुंजको तीसरी कृष्टिमें संक्रमित नहीं करता है। किन्तु समस्त प्रदेशपुंजको सूक्ष्म साम्परायिक कृष्टियोंमें संक्रमित करता है ।
६१३ शंका-सूक्ष्मसाम्परायिक गुणस्थानविषयक प्ररूपणाके करनेपर अनिवृत्तिबादर साम्परायिकविषयक यह अर्थ परामर्श असम्बद्ध कैसे नहीं हो जायेगा ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि अनिवृत्तिकरणको अन्तिम सन्धिम पहले नहीं प्ररूपित किये गये अर्थविशेषकी सम्हाल करके पीछे सूक्ष्मसाम्परायिकविषयक प्ररूपणाके करने पर मन्दबुद्धि जीवोंको भी सुखपूर्वक ज्ञान हो जाता है, इसप्रकार इस अभिप्रायसे उस प्रकारस प्ररूपणा की है।
१४ अब इस सूत्रके अर्थका कथन करनेपर क्या कारण है कि लोभसंज्जलनकी दूसरी संग्रह कृष्टि वेदकके प्रथम स्थितिमें तीन आवलियोंके शेष रहनेपर उममें से प्रदेशपुंज तोसरी कृष्टिमें संक्रमित होता है, उसके पश्चात् नहीं, इस प्रकार इसके कारणका कथन करते है। यथा-लाभका