Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 243
________________ २१० safai वं यथाबीजास्तित्वे लोके चतुष्विर्थेषु लोके तत्सदृशोह्यर्थः गर्भसूच्यां विनष्टायां विरागहेतु प्रभवं विवक्षासन्निधानेऽपि शब्दब्रह्मेति शाब्दः श्रमक्लममदव्याधि शेषकर्म फलोपेक्षां य ल व श जयधवलास हिदे कसायपाहुडे पृष्ठ संख्या १९२ १८६ १९४ १९४ १९१ १३३ १३७ सत्वन्तर्बाह्यहेतुभ्यां सपरं बाहासहियं सुखो वह्निः सुखो वायुः सुषुप्त्यवस्था तुल्या सेलेसि संपत्तो संसार विषयातीतं संहरति पंचमे स्यादेतदशरीरस्य १४६ १९४ हेयोपायतत्त्वज्ञो १९१ होइ सुगमंपि दुग्गम स ह [ २. . अवतरणसूची पृष्ठ संख्या १९० १३३ १९४ १९४ १८४ १९० १६० १९३ १९० १४५

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