Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवला भाग ४
पष्ठ पंक्ति अशुद्ध
शुद्ध ३० ३४ भंग तिर्यचों के
भंग पंचेन्द्रिय तिर्यचों के ३१ ४ णवरि मणुसपज्ज०
णवरि मणुस-मणुसपज्ज ३१ १२ मनुष्य इन
मनुष्यनी इन ३१ १५ मनुष्य पर्याप्तकों में
मनुष्य व पर्याप्तकों में ३३ ३ असंखे० भागो । सम्मत्त
असंखे० भागो । अवट्टि० ओघं । सम्मत्त३३ २० भागप्रमाण है । सम्यक्त्व भाग प्रमाण है। अवस्थित स्थितिविभक्ति का काल
ओघ के समान है । सम्यक्त्व ३६ २७ और अल्पतर
x ३६ २८ दो
तीन ५५ ९ असंखेज्जा भागा
संखेज्जा भागा ५५ ३६ असंख्यात
संख्यात ८९ १२ (कोष्टक ५) नहीं हैं । यदि हैं तो नहीं हैं । यदि हैं तो भुज० अल्प० अव० अवक्तव्य
भुज० अल्प० अव० ८९ १७ (कोष्टक ३) ,, १४४ २० एक सागर पृथक्त्व
सागर पृथक्त्व १४८ १६ मिथ्यात्व की स्थिति
मिथ्यात्व की जघन्य स्थिति १६७ २५ संख्यातभाग हानि
असंख्यातभाग हानि १६८ १८ असंख्यातवें
संख्यातवें १७७ १७ अपर्याप्तकों के समान
पर्याप्तकों के समान २१६ १२ मिच्छत्त० असंखे० गुणहाणी०
जहण्णुक्क० अंतोमु० २१६ १२ संखेज्जगुणहाणी०
असंखेज्जभागहाणी २१६ १३ उक्क० अंत्तोमु० । अणंताणु उक्क० अंतोमु०। मिच्छत्त० असंखे० गुणहाणी.
जहण्णुक्क० अंतोमु० । अणंताणु २१६ ३२ संख्यातगुणहानि का
असंख्यातभाग हानि का २३१ ४ सव्वेदिय पुढवि०
सव्वे इंदिय [सन्वसुहुम]-पुढवि० २३१ १६ सब एकेन्द्रिय, पृथ्विकायिक सब एकेन्द्रिय, सब सूक्ष्म, पृथ्वीकायिक २८१ २६ स्वस्थान में
शंका-स्वस्थान में २८१ २९ शंका-ऐसा रहते हए संख्यात भाग ऐसा रहते हए
हानि विभक्ति वालों से २९६ २८ तथा सब उपरिम भाग भी
उससे सब उपरिम भाग ३०० २३-२४ असंख्यातवें भाग प्रमाण
असंख्यात बहुभाग प्रमाण ३१९ ३४ स्थितिसत्कर्म
स्थिति सत्कर्मस्थान ३२२ २२ स्थितिसत्कर्म प्राप्त
स्थितिसत्कर्मस्थान प्राप्त