Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 267
________________ २३४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [जयधवला भाग १० पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध १०६ ८-९ अन्तर्मुहूर्त के भीतर....करने अन्तर्मुहूर्त के भीतर १० का उदीरक होकर वेदक लगता है। सम्यक्त्वसहित संयमी हो पांच की उदीरणा करने लगता है। १३४ १८ जघन्य काल जघन्य व उत्कृष्ट काल १३५ ३२ वेवक सम्यक्त्त्व को वेदक सम्यक्त्व को १३५ ३३ पक्चीस पच्चीस १९१ २० सो क्षपक सो उपशमक या क्षपक १९३ २९ आदेश से मोहनीय की आदेश से नारकियों में मोहनीय की २१५ १ पुवकोडिपुधत्तं । पुवकोडिपुधत्तं । अप्प० ओघं । २१५ १२ पुर्वकोटिपृथक्त्व प्रमाण है । पूर्वकोटिपृथक्त्व प्रमाण है । अल्पतर ओघ के समान है। २३२ २३ स्त्रीवेद की नपुसकवेद की २३३ २१ एक सागर की एक हजार सागर की २३७ २१ उत्कृष्ट जघन्य २३९ १९-२० भय और जुगुप्सा की अरति और शोक की २५६ १ सम्मामि सम्म० २५६ १९ सम्यग्मिथ्यात्व सम्यक्त्व २७६ २ एवं पुरिसवे० एवं पुरिसवे० णवूस० २७६ १७ इसी प्रकार पुरुष वेद की इसी प्रकार पुरुषवेद व नपुंसकवेद की २८९ ३१ स्त्रीवेद की नपुंसकवेद की २९१ १८ कितने है ? असंख्यात है। कितने हैं ? संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट स्थिति के उदीरक जीव कितने है ? असंख्यात हैं। २९२ ७ संखेज्जा असंखेज्जा २९२ २५ संख्यात है। असंख्यात है। २९४ १२ असंख्यातवें संख्यातवें २९९ १ जह० अजह जह० खेत्तं० । अजह. २९९ ३५ जघन्य और अजघन्य जघन्य स्थिति के उदीरकों का स्पर्शन क्षेत्र के समान है, अजघन्य ३०६ ९ असंखेज्जा संखेज्जा ३०६ २९ असंख्यात संख्यात ३१३ १५-१६ उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट जघन्य और अजघन्य ३१९ २९ अल्पतर अन्यतर ३२९ ३० ओघ के स्त्रीवेद के ३३३ १६ अनन्तानुबन्धी चतुष्क और अनन्तानुबन्धी चतुष्क, चार संज्वलन और ३३७ ५ सम्मामि० सम्म० सम्मामि० ३३७ २१ सम्यग्मिथ्यात्व सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व ३३८ ९ मिच्छ० सम्मामि० मिच्छ० सम्म० सम्मामि० ३३८ २९ मिथ्यात्व, सम्बग्मिथ्यात्व मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व

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