Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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२४४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ जयधवला भाग १५ पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध
शुद्ध १०३ २४ क्योंकि गोपुच्छाविशेषों का क्योंकि उतरे हुए अध्वान प्रमाण ही गोपुच्छाविशेषोंका १०९ २४ वेदक अवस्थित
वेदक होकर अवस्थित १०९ ३४ अश्वकरणकाल
अश्वकर्णकरणकाल १११ १८ शंक
शंका ११२ ३१ अधिक है उससे नपुंसकवेद का अधिक है उससे स्त्रीवेद का क्षपणाकाल विशेषाधिक है।
उससे नपुंसकवेद का ११३ २६ प्रदेशों तथा १३६ २१ आगता
असाता १४५ २२ अभनीय
अभजनीय १५२ २६-२७ का परमाणु इस क्षपक के उदय के परमाणु (कुछ परमाणु ही) इस क्षपक के उदय में में सक्षुब्ध होता है,
संक्षुब्ध होते हैं तो भी वह भवबद्ध निश्चय से उदय में संक्षुब्ध होता है, (अर्थात् वह भवबद्ध उदय में आया,
ऐसा कहलाता है) १५५ १९ उच्चारणा करके दूसरी भाष्यगाथा उच्चारणा नहीं करके दूसरी भाष्यगाथा के अर्थके संबंध से
सम्बन्ध से १५७ २६ उच्चारणा करके उसके अर्थ की उच्चारणा नहीं करके उसके अर्थ की ही दूसरी
दूसरी १६० ३६ विशेषों में होते
विशेषों में कियत्संख्यक (कतने) होते १६३ २५ शेष असंख्यात
शेष उत्कृष्टतः असंख्यात १६४ २७ जो प्रदेशपुंज
जो शेष प्रदेशपुंज १७१ २१ स्थिति में शेष
समय में शेष १७५ ३४ सामान्य स्थिति नहीं पायी जाती समयप्रबद्धशेष नहीं पाया जाता १७८ ३१-३२ इससे आगे जिस क्रम से वे स्थितियाँ x
बढ़ी हैं उसी क्रम से .... १७८ ३३ वहाँ असंख्यात
वहां से आगे असंख्यात १८४ ३१ भाष्यगाथा की
भाष्यगाथा के अवयवों के अर्थों की १८४ ३३ भागप्रमाण अन्तर
भागप्रमाण उत्कृष्ट अन्तर १८५ १८ जानने चाहिए
जानने चाहिए, ऐसा सूत्र के अर्थ का सम्बन्ध है। १८५ २३ समयप्रबद्धशेष नियम से
समयप्रबद्धशेष और भवबद्धशेष नियम से १८६ ३१ स्थितियों का
स्थिति का १८८ २८ समयप्रबद्धों के
समयप्रबद्धशेषों के १९३ २३ निर्लेपन स्थानों
समयप्रबद्धों १९५ २५-२६ प्रत्येक अतीत
प्रत्येक के अतीत १९९ २३-२४ आचार्य व्याख्यान करते हैं । व्याख्यानाचार्य कहते हैं। २०० ३५ अल्पबहुत्व का
स्तोकत्व का २०४ २४ सामान्य और असामान्य दोनों समयप्रबद्धशेष एवं भवबद्धशेष
स्थितियाँ