Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 268
________________ शुद्धिपत्र] २३५ शुद्ध पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध ३४१-३४-३५ जो तिर्यन....उत्पन्न होते हैं वे जो सासादन तिथंच ऊपर की पथिवी में मारणान्तिक समुद्घात कर रहे है और वहाँ सासादन से च्युत होकर मिथ्यात्व में आ जाते हैं वे सम्यक्त्व अंगुल के ओघ और गुणहाणि ३४५ २४ सम्यग्मिथ्यात्व ३४६ २० आवलिके ३५६ ३० और और ३५८ ११ गुणवडि-हाणि. ३५८ २९ असंख्यातगुण वृद्धि और ३६६ २४ दो स्थिति ३६७ १४ भव ३६८ २२ जघन्य ३७० १९ गुणवृद्धि ३७१ २२ मिथ्यात्व ३७४ २९ स्थिति उदीरणा नहीं है। ३८१ ९ अट्ठ३८१ २७ आठ भाग ३८४ २५ पल्य के ३९० ७ अवत्त० संखे० गुणा ३९० २३ उनसे अवक्तव्य....हैं । ३९२ २२ गुणहानि दो हानि स्थिति भय उत्कृष्ट गुणहानि मिथ्यात्व की स्थिति उदीरणा का अन्तर नहीं है। अट्ठ-णवआठ तथा नौ भाग आवलिके x भागहानि जयधवला भाग ११ पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध ६ २० उदीरणा और अजघन्य उदोरणा, जघन्य अनुभाग उदीरणा और अजघन्य ३५ ३६ असंख्यात गुणे हैं । संख्यातगुणे हैं । ३९ १७ वेदों को वेदों की ५५ २० यिशुद्ध ७८ १५ जीब जीव ८० ८ वेसमया। बेसमया ८० ८ सम्मामि० सम्म०-सम्मामि० ८० २७ है। सम्यग्मिथ्यात्व के है । सम्यक्त्व व सम्यग्मिथ्यात्व के ९५ १७ लोकषायों के नोकषायों के विशुद्ध

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