Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 260
________________ २२७ शुद्धिपत्र ] पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध ३३३ १५ अनुभा स्थान ३३३ २८ संज्ञा है ? ३४० ३१ होता, क्योंकि ३४० ३२ अभाव है। ३४५ १२ आत ३४७ २४ प्रमाण परूवणा ३५१ १४ बंधने वाला अनुभाग ३५२ २८ उत्कष्ट ३५४ १५ प्रथम कृण हानि ३५४ ३५ प्रसाण से ३८८ २३ पञ्चादानुपूर्वी ३८९ ३ टाणाणंप माणुप्पत्तीदो । ३८९ २२ सर्वोत्कृष्ट परिणामों के अनुभाग स्थान संज्ञा कैसे है ? होगा, क्योंकि अभाव है, किन्तु ऐसा है नहीं सात प्रमाण-प्ररूपणा बंधने वाला जघन्य अनुभाग उत्कृष्ट प्रथम गुणहानि प्रमाण से पश्चादानुपूर्वी ट्ठाणाणं पमाणुप्पत्तीदो। सर्वोत्कृष्ट विशुद्धि-परिणामों के जयधवला भाग ६ पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध ३६ ३३ प्रदेश विभक्ति प्रदेश वृद्धि ६५ ३५ भव ८ होता हैं। भाग ८ होता है। ११९ ३ संजल-पुरिस वेद संजल०- [इत्थि०] -पुरिसवेद० ११९ ४ इत्थि णवंस० णस० ११९ २० कषाय और पुरुषवेदकी कषाय, स्त्रीवेद और पुरुषवेद को ११९ २१ स्त्रीवेद और नपुंसक वेद की नपुंसकवेद की १३७ ३ उत्पकर्षित उत्कर्षित १४३ ३२ अन्योन्यान्यास अन्योन्याभ्यास १४३ ३३ उत्सन्न उत्पन्न १५६ २६ गोपुद्छा गोपुच्छा १५८ २६ अनुसरण अननुसरण २२१ ३० एम निषेक को एक निषेक को २५८ ३३ विसंयोनारूप विसंयोजनारूप २५८ २७ कये द्रव्य के गये द्रव्य के २७६ ९ ओदारेद णि ओदारेद-वाणि २७६ २५ नपुंसकवेद की दो समय की नपुंसकवेद की एक समय की २८५ २९ क्षपिरुकर्माश की क्षपितकर्माश की

Loading...

Page Navigation
1 ... 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282