Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[जयधवला भाग १
पुराना संस्करण पृष्ठ पंक्ति प्रश्न या सुझाव
समाधान ४०१ १३-१५ “सनाली के चौदह भागों में से कुछ मारणान्तिक समुद्घात तथा उपपाद की अपेक्षा
कम ६ भाग और एक भाग, दो भाग यह अतीतकालीन स्पर्शन जानना चाहिए । आदि रूप जो स्पर्श कहा है वह क्रम से सामान्य नारकी और दूसरी, तीसरी आदि पृथ्वियों के नारकियों का अतीतकालीन स्पर्शन जानना चाहिए।" [नवीन संस्करण पृ० ३६६ पं० १९) प्रश्न-यह अतीतकालीन स्पर्शन किस अपेक्षा से बनेगा ?
४०३ १४-१५ “मारणांतिक और उपपाद-पद-परिणत खुलासा इस प्रकार है-मारणांतिक समुद्घात
उक्त जीव ही त्रस नाली के बाहर और उपपात परिणत उक्न जीव वसनाली के बाहर पाय जातह, इस बात का ज्ञान कराने भी पाए जाते हैं इसका ज्ञान कराने के लिा उक्त के लिए उक्त जीवों का अतीतकालीन जीवों का अतीतकालीन स्पर्शन सर्व लोक कहा है स्पर्शन दो प्रकार का कहा है"। और विहारवत्स्वस्थान की अपेक्षा त्रसनाली के चौदह निवीन संस्करण पृ० ३६८] भागों में से ८ भाग स्पर्शन कहा है। इस प्रकार कृपया इसका खुलासा करें
अतीतकालीन स्पर्शन दो प्रकार का कहा है।
४०३ २६-२९ यहाँ दूसरे विशेषार्थ में लिखा है- बात यह है कि वैक्रियिक शरीर वालों द्वारा
"वैक्रियिकशरीर नाम कर्म के उदय से मारणांतिक समघात की अपेक्षा त्रसनाली के भीतर जिन्हें वैक्रियिक शरीर प्राप्त है उनका मध्यलोक से नीचे ६ राज और ऊपर ७ राज; इस मारणांतिक समुद्वात अस नाली के तरह तेरह राजू स्पर्शन बनता है। तथा विहारवत् भीतर मध्य लोक से नीचे ६ राजू और स्वस्थान की अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम ८ राजू [ऊपर ऊपर ७ राजू क्षेत्र में ही होता है, ६ राज, नीचे ८ राज़ ] बनता है। इस तरह कुछ इस बात का ज्ञान कराने के लिए कम १३ राजू तथा कुछ कम ८ राजू । इस तरह यहाँ अतीतकालीन स्पर्शन दो प्रकार अतीतकालीन स्पर्शन दो प्रकार का बन जाता है। का कहा है।
शेष सुगम है। नवीन संस्करण पृ० ३६८ पं० २६-२९] कृपया स्पष्ट खुलासा करिए।