Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० २२०-२२१ ]
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* किं सव्वे ट्ठिदिविसेसे संकामेदि उदीरेदि वा, आहो ए वत्तव्वं । $ १४८ सुगमं ।
* आवलियपविद्धं मोत्तृण सेसा सव्वाओ हिदी संकामेदि उदीरेदि च ।
१४९ सुगमं ।
* जं किहिं वेदेदि तिस्से मज्झिमकिट्टीओ उदीरेदि ।
$ १५० यत्थमेदं पित्तं । एवं विदियभासगाहाए अत्थविहासा समत्ता |
* एतो तदियार भासगाहाए समुत्तिणा ।
$ १५१ सुगमं ।
* जहाँ ।
$ १५२ सुगमं ।
* (१६८) ओकड्डदि जे अंसे से काले किष्णु ते पवेसेदि । कट्टिदे च पुव्वं सरिसमसरिसे पवेसेदि ॥ २२१ ॥
* क्या सभी स्थितिविशेषको संक्रमित और उदीरित करता है अथवा नहीं ? इसे कहना चाहिये ।
१४८ यह सूत्र सुगम है ।
* उदयावलिमें प्रविष्ट हुई स्थितिको छोड़कर शेष सब स्थितियोंको संक्रमित करता है और उदीरित करता है ।
$ १४९ यह सूत्र सुगम है ।
* तथा वह क्षपक जिस संग्रह कृष्टिका वेदन करता है उसकी मध्यम कृष्टियोंको उदीरित करता है ।
$ १५० यह सूत्र गतार्थ है । इस प्रकार दूसरी भाष्यगाथाको अर्थविभाषा समाप्त हुई । * यहाँ से आगे अब तीसरी भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं ।
$ १५१ यह सूत्र सुगम है । * जैसे ।
$ १५२ यह सूत्र सुगम है ।
* (१६८ ) यह क्षपक जिन कर्मप्रदेशोंका अपकर्षण करता है वह क्या उन कर्मप्रदेशोंको तदनन्तर समय में उदीरणाद्वारा प्रवेशक होता है ? जिन कर्मप्रदेशोंका पहले समय में अपकर्षण किया है उनका सदृश अथवा असदृशरूपसे उदीरणा द्वारा प्रवेशक होता है || २२१॥