Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
[ चारित्तक्खवणा
$ २२६ एदस्स सुत्तस्सत्थो -- एगकिट्टीदो वेदिदसेसगं पदेसग्गं अण्णं किट्टि संकामेमाणो 'णियमसा' णिच्छएणेव 'पयोगेण' परपयडी संकामेंतो चेव खवेड, पुण्ववेदिदसंगह किट्टीए, सेसस्स प्रयारतरेण पिल्लेवणासंभवादो । तत्थ पुण सेसपमाणं केत्तियमिदि भणिदे 'किट्टीए सेसयं पुण दो आवलियासु जं बद्धमिदि' णिहिं । एत्थ दो आवलियबद्धाणं दुसमपूणत्तं सुत्ते जइ वि ण णिद्दिहं तो वि वक्खाणादो ताविहविसेसपडिवत्ती एत्थ दट्ठव्वा, चरिमावलियाए संपूण्णाए दुचरिमावलियाए च दुसमणाए बद्धाणं णवकबद्ध समयपबद्धागं एत्थ सेसभावेण संभवदंसणादो । उच्छिडावलियपदेसग्गस्स च एत्थ सेसभावो अणुत्तसिद्धो दट्ठव्वो । संपहि एदस्सेवत्थस्स फुडीकरणमुरिमं विहासागंथमाढवेइ-
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* विहासा ।
९ २२७ सुगमं ।
* जं संगहकिट्टिं वेदेदूण तदो से काले अण्णसंगहकिहिं पवेदयदि, तदो तिस्से पुव्वसमयवेदिदाए: संगह किट्टीए जे दो आवलियबद्धा'
§ २२६ इस भाष्यगाथासूत्रका अर्थ है - एक संग्रह कृष्टिके वेदे जानेके बाद शेष रहे प्रदेश - पुंजको अन्य संग्रहकृष्टिमें संक्रमण करता हुआ 'णियमसा' निश्चयसे ही प्रयोगसे परप्रकृतिरूप संक्रमण करता हुआ क्षय करता है, क्योंकि पहले वेदी गई संग्रहकृष्टिके शेष रहे भागका अन्य प्रकारसे निर्लेपित होना सम्भव नहीं है । परन्तु उसमें शेषका प्रमाण कितना रहता है ऐसा पूछनेपर 'किट्टीए सेयं पुण दोआवलियासु जं बद्धं पिछली संग्रहकृष्टिके दो आवलिप्रमाण कालके भीतर जो बाँधा गया वह शेषका प्रमाण है, यह कहा गया है । यहाँ इस भाष्यगाथा में यद्यपि दो आवलियों में दो समय कम करके निर्देश नहीं किया गया है तो भी व्याख्यानसे इस प्रकारकी विशेषताका ज्ञान यहाँ पर कर लेना चाहिये, क्योंकि पूरी अन्तिम आवलिमें और दो समय कम द्विचरम आवलिमें बाँधे गये नवकबद्ध समयप्रबद्धों का यहाँ शेषपनेसे सम्भव दिखाई देता है। तथा उच्छिष्टावलिप्रमाण प्रदेशपुंज यहाँ पर शेष रहता है यह बात यहाँ अनुक्तसिद्ध जाननी चाहिये। अब इसो अर्थको स्पष्ट करनेकेलिये आगे के विभाषाग्रन्थको आरम्भ करते हैं
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* अब इस भाष्यगाथाकी विभाषा की जाती है ।
8 २२७ यह सूत्र सुगम है ।
* जिस संग्रहकृष्टिका वेदन करके अनन्तर समय में अन्य संग्रहकृष्टिका वेदन करता है उस समय उस पूर्व समय में वेदो गई संग्रह कृष्टिके जो दो समय कम
१. बंधा ता० ।