Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० २३१ ]
* जद्देही पुरिसवेदेण उवट्ठिदस्स इत्थीवेदस्स खवणद्धा इत्थवेदेण उवदिस्स इत्थीवेदस्स पढमट्टिदी |
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तद्देही
8 २७० पुरिसवेदोदय क्खवगस्स णव सय वेदक्खवणद्धा सहगदा इत्थीवेदक्खवणद्धा जम्महंती तत्तियमेत्ती चेव एदस्स इत्थीवेदपढमट्ठिदी होदित्ति भणिदं होदि । संप इसे पढमदीए अन्यंतरे णव सयवेदमित्थीवेदं च जहाकममेव खवेमाणस्स ण किंचि णाणत्तमत्थि त्ति पदुप्पायणमुवरिमं पबंधमाह -
* णवंसयवेदं खवेमाणस्य णत्थि पागतं ।
२७१ सुगमं ।
* सयवेदे खीणे इत्थीवेदं खवेइ |
$ २७२ सुगममेदं पि सुत्तमिदि ण एत्थ किं पि वक्खायन्त्रमत्थि ।
* जम्प्रहंती पुरिसवेदेण उवदिस्स इत्थीवेदक्खवणद्धा तम्महंती इत्थवेदे उवदिस्स इत्थीवेदस्स खवणद्धा ।
* पुरुष वेदके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए जीवके जितने प्रमाणवाला स्त्रीवेदका क्षपणाकाल होता है, स्त्रीवेदके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए क्षपकके उतने प्रमाणवाली स्त्रीवेदकी प्रथम स्थिति होती है ।
$ २७० पुरुषवेद के उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए क्षपकके नपुंसकवेदकें क्षपणाकालके साथ स्त्रीवेदका क्षपणाकाल जितना बड़ा होता है उतनी बड़ी ही इस क्षपकके स्त्रीवेदकी प्रथम स्थिति होती है; यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब इस प्रथम स्थितिके भीतर नपुंसकवेद और स्त्रीवेदको क्रमसे क्षय करनेवालेके कोई नानापन नहीं है; इस बातका कथन करनेकेलिये आगे के प्रबन्धको कहते हैं ।
* नपुंसकवेदका क्षय करनेवाले उक्त क्षपकके कोई विभिन्नता नहीं है ।
६ २७१ यह सूत्र सुगम है ।
* उक्त क्षपक नपुंसकवेदका क्षय होनेपर स्त्रीवेदका क्षय करता है ।
§ २७२ यह सूत्र भी सुगम है, इसमें कोई बात व्याख्यान करनेयोग्य नहीं है ।
* पुरुषवेदके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़नेवाले जीवके जितना बड़ा स्त्रीवेदका क्षपणाकाल है, स्त्रीवेदके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए क्षपक के उतना बड़ा स्त्रीवेदका क्षपणकाल है ।
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