Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ चारितक्खवणा
९ २७३ पुरिसवेदोदयखवगस्स इत्थीवेदखवणद्धादो एदस्स इत्थीवेदोदयक्खवगस्स तक्खवणद्धाए पमाणादो उद्दे सदो च णाणत्तसंभवाणुवलं मादो ।
* तदो अवगदवेदो सत्तकम्मंसे खवेदि ।
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$ २७४ इत्थीवेदपढमट्ठदीए ज्झीणाए अवगदवेदभावेण पुरिसवेदछण्णोकसाये खवेदिति एदमेत्थ णाणत्तमवहारेयव्वं, पुरिसवेदोदयक्खवगस्स सवेदभावेणेव छण्णोकसायपुरिसवेदाणं चिराणसतकम्मस्स णिल्लेवणदंसणादो । अण्णं च थोवयरं णाणत्तमेत्य संभवदित्ति जाणावणट्ठमिदमाह -
* सत्तण्हं पि कम्माणं तुल्ला खवणद्धा ।
$ २७५ तत्थ छण्णोकसाएस पुरिसवेदचिराणसंतकम्मेण सह निल्लेविदेसु पुणो समयूण- दोआवलियमेत्तकालेण पुरिसवेदेण णवकवंधाणं' जिल्लेवणा होदि, एत्थ पुणण तहा संभवो अत्थि, अवगदवेदभावे वट्टमाणस्स पुरिसवेदबंधासंभवेण तत्थ णवकबद्धसमयपबद्धाणमच्चंतासंभवादो ।
$ २७३ पुरुषवेदके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए क्षपकके स्त्रीवेदके क्षपणाकालसे, स्त्रीवेदके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए इस क्षपकके उस ( स्त्रीवेद ) के क्षपणाकालमें प्रमाणकी अपेक्षा और उद्देश्य की अपेक्षा किसी प्रकारकी विभिन्नताकी सम्भावना नहीं पायी जाती ।
* वह जीव तदनन्तर अपगतवेदी होकर सात कर्मोंका क्षय करता है ।
२७४ स्त्रीवेदकी प्रथम स्थितिके समाप्त होनेपर वह क्षपक अपगतवेदी होकर पुरुषवेद और छह नोकषायों का क्षय करता है, इस प्रकार यहाँपर यह विशेषता जान लेना चाहिये, क्योंकि पुरुषवेदके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़नेवाले जीवके सवेदपनेके साथ ही छह नोकषाय और पुरुषवेदके चिरकालीन सत्कर्मका निर्लेपन देखा जाता है। तथा यहाँपर अन्य भी थोड़ी विशेषता सम्भव है, इसलिये उस विशेषताका ज्ञान करानेके लिये आगे इस सूत्र को कहते हैं
* किन्तु उसके सातों कर्मोंका क्षपणाकाल तुल्य है ।
९ २७५ उसके पुरुषवेदके चिरकालीन सत्कर्मके साथ छह नोकषायों के निर्लेपित हो जानेपर पुनः एक समय कम दो आवलिप्रमाणकाल द्वारा पुरुषके नवकसमयप्रबद्धोंकी नि पता होती है, क्योंकि यहाँ पर उनका पुनः उस तरहसे रहना सम्भव नहीं है। उसका कारण नहीं है कि अपवेद वेदरूपसे विद्यमान उस क्षपकके पुरुषवेदका बन्ध सम्भव नहीं होनेसे वहाँ पर नवक समयप्रबद्धों का रहना अत्यन्त असम्भव है ।
१. णवकबद्धाणं प्रेसकापीप्रती ।