Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
जोग निरोहकिरिया ]
१६१
$ ३४९ संपहि ओदरमाणपढमसमयप्पडुडि ट्ठिदि-अणुभागघादाणं पवत्ती केरिसी होदि त्ति आसंकाए णिरागीकरणट्टमुवरिमं सुत्तमाह-
* एत्तो सेसिगाए द्विदीए संखेज्जे भागे हणइ ।
९ ३५० एत्तो ओदरमाणपढमसमयादो पहुडि सेसिगाए ट्ठिदीए अंतो मुहुत्तपमाणाए संखेज्जे भागे कंडयसरूवेण घेण द्विदिघादं णिव्वत्तेदि, तत्थ पयारतरासंभवादोत्ति वृत्तं होइ ।
* सेसस्स च श्रणुभागस्स अनंते भागे हणइ |
$ ३५१ पुवघादिदसेसाणुभागसंतकम्मस्स अनंते मागे कंडयसरूवेणागाएदूणाभादसो कुदिति भणिदं होदि ।
* एतो पाए ट्ठदिखंडयस्स अणुभागखंडयस्स च अंतोमुहुतिया उक्कीरणद्धा |
$ ३५२ लोग पूरणानंतर समय पहुडि समयं पडि विदि- अणुभागधादो णत्थि, किंतु अंतोमुहुत्तिओ चैव विदिअणुभागखंडय घादकालो पयहृदि चि एसो एत्थ
$ ३४९ अब उतरनेवाले केवली जिनके प्रथम समयसे लेकर स्थितिघात और अनुभागघातकी प्रवृत्ति कैसी होती है ? ऐसो आशंका होनेपर निशंक करनेकेलिये आगेके सूत्रको कहते हैं
* केवलिसमुद्धातसे उतरनेवालेके प्रथम समय से लेकर शेष रही स्थिति के संख्यात बहुभागका हनन करता है ।
§ ३५० एत्तो अर्थात् उतरमेवाले के प्रथम समयसे लेकर शेष रही अन्तर्मुहूर्तप्रमाण स्थिति के संत बहुभागको काण्डकरूपसे ग्रहणकर स्थितिघात करता है, क्योंकि वहाँ अन्य प्रकार सम्भव नहीं है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* तथा वहाँ शेष रहे अनुभाग के अनन्त बहुभागका हनन करता है ।
$ ३५१ पहले घात करनेसे शेष बचे अनुभागसत्कर्मके अनन्त बहुभागका काण्डकरूपसे एक समयद्वारा अनुभागघात यह जीव करता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* इसके आगे स्थितिकाण्डक और अनुभागकाण्ड कका उत्कीरणकाल अन्तर्मुहूर्त - प्रमाण होता है ।
$ ३५२ लोकपूरणसमुद्धात के सम्पन्न होनेके अनन्तर समयसे लेकर प्रत्येक समय में स्थितिघात और अनुभागघात नहीं होता । किन्तु स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डकघातका काल अन्तमुहूर्तप्रमाण प्रवृत्त होता है । इस प्रकार यह यहाँ सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है । इस प्रकार इतनी
२१