Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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परिशिष्ट ] सवासु उदिण्णासु किट्टीसु संकमदि । एदेण कारणेण जा वग्गणा उदीरेदि अणंता तासु संकमदि एक्का ति भण्णदि। एक्किस्से वि उदिण्णाए किट्टीए केत्तियाओ किट्टीओ संकमंति । 'जाओ आवलियपुवपविट्ठाओ उदयेण अधट्ठिदिगं विपच्चंति ताओ सव्वाओ एक्किस्से उदिण्णाए किट्टीए संकमंति । एदेण कारणेण पुव्वपविट्ठा एक्किस्से अणंता त्ति भण्णंति । एत्तो णवमी भासगाहा । (१७४) जे चावि य अणुभागा उदीरदा णियमसा पश्रोगेण ।
तेयप्पा अणुभागा पुवपविट्ठा परिणमंति ॥२२७॥
विहासा। जाओ किट्टीओ उदिण्णाओ ताओ पडुच्च अणुदीरिज्जमाणिगाओ वि किट्टीओ जाओ अधट्टिदिगमुदयं पविसंति ताओ उदीरिज्जमाणि याणं किट्टीणं सरिसाओ भवंति । एत्तो दसमी भासगाहा । (१७५) पच्छिम आवलियाए समयूणाए दुजे य अणुभागा।
उक्कस्स हेहिमा मज्झिमासु णियमा परिणमंति ॥२२८।।
"विहासा । पच्छिमआवलिया ति का सण्णा ? जा उदयावलिया सा पच्छिमावलिया। तदो तिस्से उदयावलियाए उदयसमयं मोत्तण सेसेसु समयेसु जा संगहकिट्टीवेदिज्जमाणिगा तिस्से अंतरकिट्टीओ सव्वाओ ताव धरिज्जंति जाव ण उदयं पविट्ठाओ त्ति । 'उदयं जाधे पविट्ठाओ ताधे चेव तिस्से संगहकिट्टीए अग्गकिट्टिमादिं कादण उवरि असंखेज्जदिभागो जहणियं किट्टिमादि कादण हेट्ठा असंखेज्जदिभागो च मझिमकिट्टीसु परिणमदि । खवणाए चउत्थीए मूलगाहाए समुक्कित्तणा । (१७६) "किट्टीदो किटिं पण संकमदि खएण किं पयोगेण ।
कि सेसगम्हि कीट्टीए संकमो होदि अणिस्से ।।२२९।। ‘एदिस्से वे भासगाहाओ। (१७७) किट्टीदो किडिं पुण संकमदे णियमसा पोगेण ।
किट्टीए सेसगं पुण दो श्रावलियाए जं बद्धं ॥२३०।।
'विहासा । जं संगहकिट्टि वेदेण तदो से काले अण्णसंगहकिट्टि पवेदयदि, तदो तिस्से पुव्वसमयवेदिदाए संगहकिट्टीए जे दो आवलियबद्धा दुसमयणा आवलियपविट्ठा च अस्सि समए वेदिज्जमाणिगाए संगहकिट्टीए पओगसा संकमंति ।
१.५० ८६ । ६. पृ० ९१ ।
२. १० ८७ । ७. पृ० ९ ।
३. पृ० ८८। ८. पृ० ९३ ।
४. पृ० ८९ । ९. पृ० ९४ ।
५. पृ० ९० । १०. पृ० ९५ ।
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