Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 206
________________ किट्टोकरणं ] १७३ ६ ३७४ पुवापुव्वफद्दएस समवद्विदाणं लोगमेत्तजीवपदेसाणं असंखेज्जदि भागमेत्तजीवपदेसे किट्टीकरणमोकड्डदि त्ति वुत्तं होदि। एत्थ पडिभागो ओकड्डुकड्डणभागहारो । एवमोकड्डिदजीवपदेसे किट्टीसु कदमेण विण्णासविसेसेण णिक्खिवदि ति चे वुच्चदे--पढमसमयकिट्टीकारगो पुवफदएहितो अपुव्वफद्दएहितो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागपडिभागेण जीवपदेसे ओकड्डियण पढमकिट्टीए बहुए जीवपदेसे णिक्खिवदि । बिदियाए किट्टीए विसेसहीणे णिसिंचदि । को एत्थ पडिभागो १ सेढीए असंखेज्जदिभागमेत्तो णिसेगमागहारो। ६३७५ एवं णिक्खिमाणो गच्छदि जाव चरिमकिट्टि त्ति । पुणो चरिमकिट्टीदो अपुव्वफद्दयादिवग्गणाए असंखेज्जगुणहीणं णिसिंचिदूण तत्तो विसेसहाणीए णिसिंचदि त्ति णेदव्वं । पुणो बिदियसमए पढमसमयोकड्डिदजीवपदेसेहितो असंखेज्जगुणे जीवपदेसे ओकड्डियण पढमाए तक्कालणिन्वत्तिज्जमाणीए अपुवकिट्टीए बहुगे जीवपदेसे णिसिंचदि । विदियाए विसेसहीणे असंखेज्जदिभागेण । एवं णिक्खिवमाणो गच्छदि जाव बिदियसमए कीरमाणीणमपुवकिट्टीणं चरिमकिट्टि त्ति । पुणो चरिमादो बिदियसमयपुवकिट्टीदो पढमसमये णिव्वत्तिदाणमपुवकिट्टीणं जा जहणिया किट्टी तिस्से 8 ३७४ पूर्व और अपूर्व स्पर्धकोंमें अवस्थित लोकप्रमाण जीवप्रदेशोंके असंख्यातवें भागप्रमाण जीवप्रदेशोंका कृष्टि करनेकेलिये अपकर्षित करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। यहाँ प्रतिभाग अपकर्षण-उत्कर्षण भागहाररूप है । शंका-इसप्रकार अपकर्षित किये गये जीवप्रदेशोंका कृष्टियोंमें किस रचना विशेषरूपसे निक्षिप्त करता है ? समाधान-कहते हैं-प्रथम समयमें कृष्टियोंको करनेवाला योगनिरोध करनेवाला जीव पूर्व स्पर्धकोंमेंसे और अपूर्व स्पर्धकोंमें से पल्योपमके असंख्यातवें भागरूप प्रतिभागसे जीवप्रदेशोंको अपकर्षितकर प्रथम कृष्टिमें बहुत जीवप्रदेशोंको निक्षिप्त करता है। दूसरी कृष्टिमें विशेषहीन जीवप्रदेशोंको निक्षिप्त करता है । शंका--यहाँपर प्रतिभागका प्रमाण क्या है ? समाधान–यहाँपर जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण निषेक भागहार प्रतिभागका प्रमाण है। ६३७५ इसप्रकार निक्षेप करता हुआ अन्तिम कृष्टिके प्राप्त होने तक निक्षेप करता जाता है। पुनः अन्तिम कृष्टिसे अपूर्व स्पर्धकोंकी आदि वर्गणामें असंख्यात गुणहीन जीवप्रदेशोंको सिंचितकर उससे आगे विशेष हानिरूपसे सिंचित करता है ऐसा जानना चाहिये । पुनः दूसरे समयमें प्रथम समयमें अपकर्षित किये गये जीवप्रदेशोंसे असंख्यातगुणे जीवप्रदेशोंको अपकर्षित करके उस कालमें रची जानेवाली प्रथम अपूर्व कृष्टि में बहुत जीवप्रदेशोंको सिंचित करता है। दूसरी कृष्टिमें असंख्यातवें भागप्रमाण विशेषहीन जीवप्रदेशोंको निक्षिप्त करता है। इस प्रकार निक्षेप करता हुआ

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