Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [खीणकसायगुणट्ठाणसख्वं णिस्सेसखीणमोहो फलिहामलभायणुदयसमचित्तो।
खीणकसाओ भण्णइ णिग्गंथो वीयरागेहिं ॥ तदेवं लक्षणं क्षीणकषायगुणस्थानं प्रतिपद्य तत्प्रथमसमये वर्तमानस्यास्य क्षपकस्य करणीयविशेषप्रतिपादनार्थ मुत्तरसूत्रावतार:--
* ताधे चेव हिदि-अणुभागपदेसस्स अबंधगो।
$ २८७ तदवस्थायामेव सर्वकर्मणां स्थित्यनुभवप्रदेशानामबंधक इत्युक्तं भवति । कषाये हि स्थित्यादिबंधकारणं, तस्य तदन्वयव्यतिरेकानुविधायित्वात् । ततः कषायपरिणामसंश्लेषापगमान्नास्य स्थित्यादिबंधसंभव इति सुनिरूपितमेतत् । पयडिबंधो पुण जोगमेत्तणिबंधणो खीणकसाये वि संभवदि त्ति ण तस्स पडिसेहो एत्थ कदो। सो वि वेदणीयस्सेव । सादावेदणीयं मोत्तणण्णासि पयडीणमेत्थ बंधाणुवलंभादो । सो वुण सुक्ककुड्डुपदिदपांसुमुट्टिव्यबंधाणंतरसमये चेव गलदि , द्विदिअणुभागबंधकारणकमायसंसग्गामावेण ढक्कबिदियसमये चेव इरियावहबंधस्स णिज्जरोवएसादो। एत्थ
जिसने सम्पूर्ण मोहनीयकर्मका क्षय कर दिया है, जिसका चित्त स्फटिक मणिके निर्मल भाजनमें रखे हुए जलके समान निर्मल है वह वीतराग जिनदेवकेद्वारा निर्ग्रन्थ वीतराग गुणस्थानवाला कहा जाता है ।
इस प्रकार ऐसे लक्षणसे युक्त क्षोणकषाय गुणस्थानको प्राप्तकर करणीय विशेषका प्रतिपादन करनेकेलिये आगेके सूत्रका अवतार करते हैं
* उसी समय सभी कर्मोंके स्थितिवन्ध, अनुभागवन्ध और प्रदेशबन्धका अबन्धक होता है।
६२८७ उसी अवस्थामें सब कर्मोंके स्थिति, अनुभाग और प्रदेशोंका अबन्धक होता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है । कषाय ही स्थितिबन्ध आदिका कारण है, क्योंकि कषायके होनेपर स्थितिबन्ध आदि होता है और उसके अभाव में नहीं होता है। एक स्थिति आदिबन्धका कषायके साथ अन्वय-व्यतिरेक सम्बन्ध है, इसलिये कषायरूप परिणाम के संश्लेषका अभाव हो जानेसे इस क्षपकके स्थिति आदिका बन्ध सम्भव नहीं है । इस प्रकार यह अच्छी तरह कहा गया है । परन्तु प्रकृतिबन्ध योगनिमित्तक क्षीणकषायगुणस्थानमें भी सम्भव है, इसलिये उसका यहाँ प्रतिषेध नहीं किया गया है। सो वह भी वेदनीयकर्मका ही होता है, क्योंकि सातावेदनीय कर्मको छोड़कर अन्य प्रकृतियोंका यहाँ पर बन्ध नहीं पाया जाता। परन्तु वह सूखी दीवालपर गिरी हुई मुट्ठी भर धूलके समान बन्धके अनन्तर समयमें हो गल जाती है, क्योंकि स्थितिबन्ध और अनुभागबन्धके कारण कषायोंके संसर्गका अभाव होने से प्राप्त हुए दूसरे समयमें हो ईर्यापथबन्धको निर्जराका उपदेश पाया जाता है ।
१. गलिददिदि प्रेसकापीप्रती ।