Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० २३२॥
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२९७ एसा मूलगाहा खीणकसायविसयासेसपरूवणं पुच्छामुहेण पदुप्पाएदि । तं जहा-'खीणेसु कसायेसु य' एवं भणिदे अणियट्टिसुहमसांपराइयगुणट्ठाणेसु पढमसुक्कस्स झाणपरिणामेण जहाकम कमायेसु पुव्वत्तेण विहिणा खविदेसु खीणकसायगुणट्ठाणं पविट्ठस्स तदवत्थाए 'सेसाणं' कम्माणं णाणावरणादिकम्माणं' 'के व होति वीचारा' काओ वा किरियाओ होंति ? 'खवणा वा अखवणा वा बंधोदयणिज्जरा वा' केसि कम्माणं केरिसी होदि त्ति सुत्तत्थसंबंधवसेण एसा मूलगाहा खीणकसायविसयासेसपरूवणं पुच्छामुहेण जाणावेदि त्ति घेत्तव्वं । ___२९८ एदिस्से मूलगाहाए भासगाहाओ गत्थि, सुबोहत्तादो। तदो एदिस्से अत्थपरूवणा-किट्टीसु एक्कारस मूलगाहाणं अत्थे भण्णमाणे जहा कदा, तहा चेव णिरवसेसं कायव्वा, विसेसाभावादो। णवरि एत्थ द्विदिघादेण १, ट्ठिदिसंतकम्मेण २, उदयेण ३, उदीरणाए ४, द्विदिखंडएण ५, अणुभागखंडयेण ६, एत्तियमेत्ताओ किरियाओ वत्तव्वाओ । 'खवणा वा अखवणा वा' एवं भणिदे एवमेदं पदं कसाएसु खीणेसु खीणकसायगुणट्ठाणे तिण्हं घादिकम्माणं खवणाविहिमघादिकम्माणं च ताधे
६ २९७ यह मूल सूत्रगाथा क्षीणकषायविषयक समस्त प्ररूपणाका पृच्छामुखसे कथन करती है। यथा-'खीणेसू कसाएस य' ऐसा कहनेपर अनिवृत्तिकरण और सूक्ष प्रथम शुक्लध्यानसम्बन्धीध्यानरूप परिणामसे यथाक्रम कषायोंके पूर्वोक्त विधिसे क्षपित हो जानेपर क्षीणकषायगुणस्थानमें प्रविष्ठ हुए जीवके उस अवस्थामें 'सेसाणं' कम्माणं अर्थात् ज्ञानावरणादि कर्मोंके 'के व होंति वीचारा' अर्थात् क्या क्रियापरिणाम होते हैं-'खवणा वा अखवणा वा बंधोदयाणिज्जरा वा' अर्थात् (उन कर्मोंकी) क्षपणा होती है या क्षपणा नहीं होतो, बन्ध, उदय और निर्जरा क्या होती है ? किन कर्मोंको किस प्रकारको होती है ? इस प्रकार उक्त सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्धके वशसे यह मूल सूत्रगाथा क्षीणकषायगुणस्थानविषयक सम्पूर्ण प्ररूपणाका पृच्छामुखसे' ज्ञान कराता है, ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिये ।
६२९८ इस मूल सूत्रगाथाकी भाष्यगाथाएं नहीं हैं क्योंकि यह सूत्रगाथा सुबोध है । इसलिये इसकी अर्थप्ररूपणा करते हैं- कृष्टियोंके विषयमें ग्यारह मूल गाथाओंके अर्थके अर्थका कथन करनेपर जिस प्रकार उनका कथन किया है उसी प्रकारका इसका पूरा कथन करना चाहिये । क्योंकि उक्त कथनसे इसके कथनमें कोई विशेषता नहीं है। इतनी विशेषता है कि यहाँपर स्थितिघात १, स्थितिसत्कर्म २, उदय ३, उदोरणा ४, स्थितिकाण्डक ५ और अनुभागकाण्डक ६ इतनी क्रियायें कहनी चाहिये । 'खवणा वा अखवणा वा' ऐसा कहनेपर-इस प्रकार यह पद कषायोंके क्षोण होनेपर क्षोणकषाय गुणस्थानमें तोन घातिकर्मोकी क्षपणाविधिको और अघातिकर्मोंके क्षपणाके अभावकी
१. आ० प्रतौ णाणावरणादोणं इति पाठः । २. आ० प्रती मूलगाहाओ इति पाठः ।