Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 175
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ खवणाहियार चूलिया ६ ३१९ एसा वि सुतगाहा आणुपुव्वी संकमात्रसरे पुव्वमेव उक्कडणासंकर्म परपयडिसंकमं च समस्सियूण विहासिदा त्ति ण एत्थ किंचि वक्खाणेयव्वमत्थि । एत्तो खवगस्स अणुभागपदेसविसयाणं बंधोदयसंकमाणं थोवबहुत्तावहारणमुवरिमाणं तिन्हं सुत्तगाहाणमवयारो -- १४२ * बंधेण होइ उदयो अहि उदयेण संकमो हि । गुणसेढि अनंतगुणा बोद्धव्वा होइ अणुभागे ॥७॥ * बंधेण होइ उदो अहिओ उदएण संकमो हि । गुणसे असंखेज्जा च पदेसग्गेण बोद्धव्या ॥८॥ * उदयो च अनंतगुणो संपहि बंधेण होइ अणुभागे । से काले उदयादो संपहि बंधो अनंतगुणो ||९|| विहासिदो तहा चेव पुणो सव्वकम्माणं द्विदिबंध - ९ ३२० एदासिं तिहं सुत्तगाहाणमत्थो जहा पुन्वं वि अणुभासियो । एत्तो चरिमसमयबादरसां पराइयस्स पाणावहारणङ्कं दसमी गाहा समोइण्णा -- $ ३१९ इस सूत्र गाथाको भी आनुपूर्वी संक्रमके अवसरपर पहलेही उत्कर्षण संक्रम और परप्रकृति संक्रमका आश्रय करके विभाषा कर आये हैं, इसलिये यहाँपर कुछ भी व्याख्यान करनेयोग्य नहीं है । आगे क्षपकके अनुभाग और प्रदेशविषयक बन्ध, उदय और संक्रमके अल्पबहुत्वका निश्चय करनेकेलिये आगे तीन सूत्रगाथाओंका अवतार करते हैं * बन्धसे उदय अधिक होता है और उदयसे संक्रम अधिक होता है । इसप्रकार अनुभाग में गुणश्रेणी अनन्तगुणी जानने योग्य है ||७|| * बन्धसे उदय अधिक होता है और उदयसे संक्रम अधिक होता है । इसप्रकार प्रदेश की अपेक्षा गुणश्रेणि असंख्यातगुणी जाननी चाहिये ||८|| * अनुभागके विषय में साम्प्रतिक बन्धसे साम्प्रतिक उदय अनन्तगुणा होता है तथा तदनन्तर समय में होनेवाले उदयसे साम्प्रतिक बन्ध अनन्तगुणा होता है || ९ || ३२० इन तीनों सूत्रगाथाओं के अर्थकी जैसे पहले विभाषा कर आये हैं उसीप्रकार उनकी फिर भी विभाषा करनी चाहिये । अब बादरसाम्परायिक जीवके अन्तिम समयमें सब कर्मोके स्थितिबन्धके प्रमाणका अवधारण करनेकेलिये दसवीं गाथा अवतीर्ण हुई है १. (९०) १४३ भाग १५ । २. (९१) १४४ भाग ० १५ । ३. (९२) १४५ भाग १५ ।

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