Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० १-७]
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गणहरदेवाण णमो गोदम-लोहज्ज-जंबुसामीणं । जिणवरवयण विणिग्गयदिव्वज्झुणी विवरिया जेहिं ।। १ ॥ ते उसहसेणपमुहा गणहरदेवा जयंति सव्वे वि ।। सुदरयणायरपारो दूरो वि पराइयो जेहिं ॥ २ ॥ इय सुहुमदुरहिगमभंगसंकुलं ण यसहस्सगंभीरं । गाहासुत्तत्थमिणं णिस्सेसं को भणेज्ज छदुमत्थो ॥ ३ ॥ तह वि गुरुसंपदार्य मणम्मि काऊण पुश्वसूरीणं । आदरिसदसणेण य दरिसियमेदं दिसामेत्तं ।। ४ ॥ अब्भपडलं व सुत्तं बहुभंगतरंगभंगुरं जम्हा । वित्थारजाणएहिं वित्थरियव्वं हवे तम्हा ॥ ५ ॥ जं एत्थत्थक्खलियं सद्दक्खलियं च जं हवे किंचि । तं तु महता मिच्छा मे दुक्कडं तस्स ॥ ६ ॥ होइ सगमं पि दुग्गम-मणिवणवक्खाणकारदोसेण । जयधवलाकुसलाणं सुगमच्चिय दुग्गमा वि अत्थगई ॥ ७ ॥
जिन्होंने जिनवरके मुखसे निकली हुई दिव्यध्वनिको विस्तारसे कहा उन गौतमस्वामी, लोहार्या और जम्बूस्वामी [आदि| गणधरोंको हमारा नमस्कार होओ ॥ १ ॥
जिन्होंने श्रुतरत्नरूपो सागरसे पार होकर उसे दूरसे हो पराजित कर दिया है ऐसे जो वृषभसेन प्रमुख गणधर हो गये हैं वे सब भी जयवन्त होवें ॥ २ ॥
___ इन गाथासूत्रोंका अर्थ सूक्ष्म है, दुरधिगम्य है, भंगोंसे संकुल है और हजारों नयोंसे गम्भीर है; अतः ऐसा कौन छद्मस्थ है जो उसका पूरी तरहसे कथन कर सके ।। ३ ।।
तो भी पूर्वमें हुए आचार्यो केद्वारा चले आ रहे गुरुसम्प्रदायको मनमें धारण करके आदर्शके देखनेके समान इसका दिशामात्र कथन किया है ।। ४ ॥
यतः यह सूत्रग्रन्थ मेघपटलके समान बहुत प्रकारको तरंगोंसे भंगुर है; अतः विस्तारको जाननेवाले पुरुषोंकेद्वारा इसका विस्तारसे वर्णन किया जाना चाहिये ।। ५ ।।
इसके कथनमें मेरे द्वारा जो कुछ भो अर्थका स्खलन हुआ है या जो कुछ शब्दोंका स्खलन हुआ है उसे महापुरुष पूरा करें । उस सम्बन्धविषयक मेरा दुष्कृत मिथ्या होओ ॥ ६ ॥
जो महानुभाव इसके व्याख्यान करने में निपुण नहीं हैं उनके उस दोषके कारण इसका व्याख्यान सुगम होकर भो दुर्गम हो जाता है। तथा जो जयधवलाकेद्वारा इसका व्याख्यान करने में कुशल हैं उनकेलिये इस कषायप्राभृतके अर्थका ज्ञान दुर्गम होते हुए भो सुगम हो जाता है ।। ७ ।।
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