Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० २३१]
१०३ भिण्णकसायोदयसहकारिकारणसण्णिहाणवसेण पयदणाणत्तसिद्धीए बाहाणुवलभादो। तदो तदियमेदं णाणत्तमिदि सिद्धमविरुद्धं । ___ * कोहेण उवट्टिदस्स जा किट्टीकरणद्धा माणेण उवट्टिदस्स तम्हि काले अस्सकण्णकरणद्धा। .
२४७ पुबिल्लखवगस्स जम्मि उद्दे से चदुण्हं संजलणाणं किट्टीकरणद्धा पयदृदि तम्हि एदस्स माणोदयक्खवगस्स तिण्हं संजलणाणमस्सकण्णकरणद्धा पवत्तदि, तत्थ तिस्से जहावसरपत्तत्तादो त्ति वुत्तं होइ । तदो चउत्थमेद णाणत्तमेदस्स माणोदयक्खवगस्स जादमिदि सिद्धं ।। __* को हेण उवट्टिदस्स जा कोहस्स खवणद्धा माणेण उवट्टिदस्स तम्हि काले किट्टीकरणद्धा।
२४८ तुबिल्लखवगस्स जम्मि उद्देसे कोहस्स तिण्हं संगहकिट्टीणं खवणकालो जादो तम्हि एदस्स खवगस्स तिण्हं संजलणाणं किट्टीकरणद्धा भवदि, पुवमेव णिस्संतीकयकोहसंजलणसव्वद्ध-माण-माया-लोहसंजलणपडिबद्धाणं णवण्हं संगहकिट्टीणं परिप्फुडमेव णिवत्तणोवलंभादो त्ति पंचममेदं णाणत्तमवहारेयव्वं ।
सहकारी कारणोंके सन्निधानके वशसे प्रकृतमें नानापनकी सिद्धिमें कोई बाधा नहीं पाई जाती। इसलिये यह तीसरा नानापन है, यह अविरोधरूपसे सिद्ध हो जाता है।
क्रोधसंज्वलनके उदयसे क्षपक श्रेणिपर चढ़े हुए क्षपकके जो कृष्टिकरणका काल है, मानसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए क्षपकके उस कालमें अश्वकर्णकरण काल होता है ।
६२४७ पिछले क्षपकके जिस स्थानमें चारों संज्वलनोंका कृष्टिकरणकाल प्रवृत्त होता है उसी स्थान पर मानसंज्वलनके उदयसे क्षपक श्रेणिपर चढे हए इस क्षपकके तीन संज अश्वकर्णकरणकाल प्रवृत्त होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि वहाँ वह यथावसरप्राप्त है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इस कारण मानसंज्वलनके उदयसे क्षपक श्रेणिपर चढ़े हुए इस क्षपकके यह चौथा भेद हो गया है, यह सिद्ध हुआ। ___ * क्रोधसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए क्षपकके जो क्रोधसंज्वलनका क्षपणा-काल है, मानसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए क्षपकके उस कालमें कृष्टिकरण-काल होता है।
६२४८ पिछले क्षपकके जिस स्थानमें क्रोध संज्वलनको तीन संग्रह कृष्टियोंका जो क्षपणा काल हो गया है उसो स्थानमें इस क्षपकके तोन संज्वलनोंका कृष्टिकरणकाल होता है, क्योंकि जिसने पहले ही क्रोध संज्वलनको निःसत्त्व कर दिया है उसके उस सब कालके भीतर मान, माया और लोभ संज्वलनसे सम्बन्ध रखनेवाली नौ संग्रह कृष्टियोंकी स्पष्टरूपसे ही रचना पाई जाती है, इस प्रकार यह इन दोनोंमें पाँचवाँ भेद जानना चाहिये ।