Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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११० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[चारित्तक्खवणा ण च एवंविहा पढमट्ठिदी एत्थ णिरत्थिया, एदिस्से चेव पढमद्विदीए अब्भंतरे कोहमाण-मायाणं खवण द्धाओ अस्सकण्णकरणकिट्टीकरणद्धाओ च जहाकममणपालेमाणस्सेदस्स एम्महंतीए पढमहिदीए सप्पओजणत्तदंसणादो। संपहि एदिस्से पढमद्विदीए अभंतरे कोरमाण कज्जभेदाणं णिण्णयविहाणट्ठमुवरिमं पबंधमाह___ * कोहेण उवविदो जम्हि अस्सकण्णकरणं करेदि, लोभेण उवडिवो तम्हि कोहं खवेदि।
* कोहेण उवट्टिदो जम्हि किट्टीओ करेदि लोभेण उवट्टिदो तम्हि . माणं खवेदि। __* कोहेग उवट्ठिदो जम्हि कोहं खवेदि लोभेग उवढिदो तम्हि मायं खवेदि।
* कोहेण उवढिदो जम्हि माणं खवेदि, लोभेग उवहिदो तम्हि अस्सकण्णकरणं करेदि ।
प्रथम स्थिति यहाँ पर निरर्थक नहीं है क्योंकि इसी प्रथम स्थितिके भीतर क्रोध, मान और मायासंज्वलनोंके क्षपणाकालों, अश्वकर्णकरणकाल तथा कृष्टिकरणकालोंको क्रमसे पालन करनेवाले इस क्षपकके इतनी बड़ी प्रथम स्थिति सप्रयोजन देखी जाती है। अब इस प्रथम स्थितिके भीतर किये जानेवाले कार्योंके भेदोंका निर्णय करनेकेलिये आगेके प्रबन्धको कहते हैं--
* क्रोधसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़ा हुआ क्षपक जिस कालमें अश्वकर्णकरण करता है, लोमसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़ा हुआ क्षपक उस कालमें क्रोधसंज्वलनकी क्षपणा करता है।
* क्रोध संज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़ा हुआ क्षपक जिस कालमें कृष्टियोंको करता है, लोभसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़ा हुआ क्षपक उस कालमें मानसंज्वलनका क्षय करता है ।
* क्रोधसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़ा हुआ क्षपक जिस कालमें क्रोधसंज्वलनका क्षय करता है, लोभसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़ा हुआ क्षपक उस कालमें मायासंज्वलनका क्षय करता है।
* क्रोधसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़ा हुआ क्षपक जिस समय मानसंज्वलनका क्षय करता है, लोभसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़ा हुआ क्षपक उस समय अश्वकर्णकरण करता है ।