Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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[चारित्तक्खवणा
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे ____ * कोहेण उवट्ठिदो जम्हि मायं खवेदि तम्हि चेव मायाए उवढिदो मायं खवेदि।
६२५८ दोण्हं पि खवगाणं माया-खवणद्धाएं'णाणत्तेण विणा पवत्तिदंसणादो; ण तत्थ किंचि णाणत्तमिदि वृत्तं होइ । एत्तो प्पहुडि जाव सुहुमसांपराइयकिट्टीखवणद्धा ताव णत्थि चेव णाणत्तमिदि पदुप्पायणट्ठमिदमाह* एत्तो पाए लोभं खमाणस्स णत्थि णाणत्तं ।
२५९ गयत्थमेदं सुत्तं, एदम्मि विसये दोण्हं पि खवगाणं णाणत्तेण विणा पवुत्तिदंसणादो। एवमेत्तिएण पबंधेण मायोदयक्खवगस्स णाणत्तपरूवणं कादण संपहि लोभोदयक्खवगं घेत्तूण कोहोदयक्खवगेण सह सण्णियासं कुणमाणो उवरिमं पबंधमाढवेइ ।
* पुरिसवेदयस्स लोभेण उवट्ठिदस्स णाणत्तं वत्तइस्सामो । ६२६० सुगमं।
* क्रोधसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़ा हुआ क्षपक जिस समय माया का क्षय करता है उसी समय मायासंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़ा हुआ क्षपक मायासंज्वलनका क्षय करता है ।
६ २५८ दोनों ही क्षपकोंके मायासंज्वलनके क्षपणासम्बन्धी कालमें विभिन्नताके बिना प्रवृत्ति देखी जाती है, वहां कुछ भी भेद नहीं है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है । तथा यहाँसे लेकर जब तक सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिका काल है तब तक कोई भेद नहीं है, इस बातका कथन करनेकेलिये इस सूत्रको कहते हैं
* इससे आगे लोम-संज्वलनकी क्षपणा करनेवालेके कोई भेद नहीं है।
६२५९ यह सूत्र गतार्थ है, क्योंकि इस स्थानमें दोनों ही क्षपकोंके भेदके बिना प्रवृत्ति देखी जाती है। इस प्रकार इतने प्रबन्धद्वारा मायासंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए क्षपककी विभिन्नताकी प्ररूपणा करके अब लोभसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए क्षपकको ग्रहणकर क्रोधसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणिपर चढ़े हुए क्षपकके साथ सन्निकर्षको करते हुए आगेके प्रबन्धको आरम्भ करते हैं
* लोभसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणि पर चढ़े हुए पुरुषवेदी क्षपककी विभिन्नताको बतलावेंगे।
६२६० यह सूत्र सुगम है।
१. खवगाणं खवणद्धाए आ० ।