Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० २२८ ]
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$ २१९ सुगमं ।
* उदयं जाधे पविट्टाओ ताधे चैव तिस्से संगहकिहीए अग्गकिहिमादिं का उवर असंखेज्जदिभागो जहणियं किहिमादिं काढूण हेट्ठा असंखेज्जदिभागो च मज्झिमकिट्टीसु परिणमदि ।
$ २२० गयत्थमेदं पि सुत्तं । एवमेदाओ तिष्णि वि अनंतरभासगाहाओ अणुभागोदयमेव जहाकममुदीरणापहाणं कम्मोदय पहाणमुदयावलियपविद्वाणुभागपहाणं च काढूण परूर्वेति त्ति घेत्तव्वं ।
$ २२१ एवमेदाहिं दसहिं भासगाहाहिं किट्टीखवगस्स तदियमूलगाहाए अत्थविहासणं समाणिय संपहि जहावसरपत्ताए चउत्थमूलगाहाए अवयारकरणट्टमुवरिमं पबंधमाढवेइ—
* खवणाए चउत्थीए मूलगाहाए समुक्कित्तणा ।
९ २१९ यह सूत्र सुगम है ।
* किन्तु जिस समय वे उदय में प्रविष्ट होती हैं उसी समय उस संग्रह कृष्टिकी अग्र अन्तरकृष्टि से लेकर उपरितन असंख्यातवें भागप्रमाण अन्तरकृष्टियाँ तथा जघन्य अन्तरकृष्टिसे लेकर अधस्तन असंख्यातवें भागप्रमाण अन्तरकृष्टियाँ मध्यम कृष्टियोंरूपसे परिणम जाती हैं ।
8 २२० यह सूत्र भी गतार्थ है । इस प्रकार अनन्तर कही गई ये तीनों ही भाष्यगाथाएँ यथाक्रम उदीरणाप्रधान अनुभागोदयका तथा उदयावलिमें प्रविष्ट हुए अनुभागप्रधान कर्मोंके उदयकी प्रधानताका ही कथन करती हैं, ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिये ।
विशेषार्थ — जो पहले ८-९वीं भाष्यगाथाओं में कौन कृष्टियाँ उदीरणाको प्राप्त होती हैं और to कृष्टियाँ अधःस्थितिकी गलनाद्वारा क्रमसे उदयावलिमें प्रविष्ट होकर उदय समयमें उदीरणा रूप कृष्टियों में संक्रमित होकर उदयको प्राप्त होती हैं इस बातका स्पष्टीकरण कर आये हैं । इस भाष्यगाथा में यह बतलाया गया है कि उदयावलिमें प्रविष्ट हुईं वे अधस्तन और उपरिम असंख्यातवें भागप्रमाण कुष्ठियाँ एक समय कम उदयावलिप्रमाण काल तक तदवस्थ रहती हैं तथा अन्तिम समय में क्रमसे थे कृष्टियाँ बहुभागप्रमाण मध्यम कृष्टियोंरूपसे संक्रमण करके उदयको प्राप्त होती हैं । $ २२१ इस प्रकार इन दस भाष्यगाथाओं द्वारा कृष्टिक्षपकके तीसरी मूलगाथाके अर्थकी विभाषा समाप्त करके अब यथावसरप्राप्त चौथी मूलगाथाका अवतार करनेकेलिये आगेके प्रबन्धको आरम्भ करते हैं