Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० २२८ ]
२१४ विहासेयव्वा त्ति वृत्तं होड़ |
वमभासगाहाविहासणाणंतरमेत्तो
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दसमभासगाहा जहावसर पत्ता
* (१७५) पच्छिम श्रावलियाए समयाए दु जे य 'अणुभागा 1 उक्कस हेडिमा मज्झिमासु पियमा परिणमति ॥ २२८ ॥
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$ २१५ एसा दसमी भासगाहा उदयावलियपविद्वाणमणुभागकिट्टीणं मज्झिमकिट्टी सरूवेणुदयसंपत्तीए सुद्द परिष्फुडीकरणडमोइण्णा । संपछि एदिस्से अवयवत्थो बुच्चदे । तं जहा – पच्छिमा आवलिया पच्छिमावलिया उदयावलिया त्ति वृत्तं होदि । तिस्से पच्छिमावलियाए समयूणाए उदयसमयवज्जाए 'जे अणुभागा' जे खलु अणुभागा किट्टीसरूवा 'उक्कस्स हेट्टिमा' हेट्टिमोवरिमासंखेज्जदिभागविसयपडिबद्धत्तेण उक्कस्स जहण्णववएसमवलंचमाणा 'मज्झिमासु' मज्झिमबहुभाग किट्टीसु नियमा पिच्छयेणेव परिणमति । किमुक्तं भवति ? उदयावलियपविटुस्स सव्वकिट्टीओ जाव उदयसमयं ण दुक्कंति ताव अप्पप्पणो सरूवेण णिव्वाहमच्छिथूण तदो जहाकममुदयडिदिमणुपाविय तक्काले चेव हेडिमोवरिमासं खेज्जदिभाग किट्टी सरूवमुज्झियूण मज्झिमेसु असंखेज्जेसु भागेसु जाओ किड्डीओ तदायारेण परिणमिय फलं दादूण
$ २१४ नौवीं भाष्यगाथाकी विभाषा करनेके अनन्तर आगे यथावसर प्राप्त दसवीं भाष्यगाथाकी विभाषा करनी चाहिये, यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* (१७५) एक समय कम अन्तिम आवलि ( उदयावलि) की उत्कृष्ट और जघन्य असंख्यातवें भागप्रमाण जो अनुभाग कृष्टियाँ हैं वे सब असंख्यात बहुभाग प्रमाण मध्यम कृष्टियों के रूपसे नियमसे परिणम जाती हैं ||२२८||
8 २१५ यह दसवीं भाष्यगाथा, उदयावलिमें प्रविष्ट हुईं अनुभाग कृष्टियों के मध्यम कृष्टिरूप से उदयसंम्पत्तिको अच्छी तरहसे करने के लिये, अवतीर्ण हुई है । अब इसके अवयवोंका अर्थ कहते हैं । वह जैसे - पश्चिम जो आवलि वह पश्चिमावलि है । पश्चिम आवलि अर्थात् उदयावलि यह उक्त कथनका तात्पर्य है । एक समय कम अर्थात् उदयसमयसे रहित उस पश्चिम आवलिको 'उक्कस्सहेट्ठिमा ' अधस्तन और उपरिम असंख्यातवें भागरूप विषयके सम्बन्धसे उत्कृष्ट और जघन्य संज्ञाका अवलम्बन करनेवाले 'जे 'अणुभागा' कृष्टिस्वरूप जो अनुभाग हैं वे बहुभागप्रमाण मध्यम कृष्टियोंरूपसे 'णियमा' निश्चयसे ही परिणम जाते हैं ।
शंका- यहाँ क्या कहा गया है ?
समाधान — यहाँ यह कहा गया है कि उदयावलिमें प्रविष्ठ हुईं सभी कृष्टियाँ जब तक उदयसमयको नहीं प्राप्त होती हैं तब तक अपने-अपने स्वरूपसे निर्बाध रूप से रहकर तदनन्तर यथाक्रम उदयरूप स्थितिको प्राप्तकरके उसी समय 'अधस्तन और उपरिम असंख्यातवें भागप्रमाण कृष्टियों के
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