Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० २२४ ]
पढमदिए चरिमदि ति ताव असंखेज्जसेढिसरूवेण णिक्खिवदि । संपहि पढमसमयम गुणसेढिसरूवेण णित्ति पदेसपिंडादो विदियसमयम्मि ओकड्डियूण गुणसेढिसरूवेण णिसिंचमाणपदेसपिंडो असंखेज्जगुणो भवदि परिणामपाहम्मादो | तेण चिदियसमये उदयादो तम्मि चेव समए उदीरणादव्वमसंखेज्जगुणं किं ण होदिति एवं भणिदे ण होदि । किं कारणं, पढमसमयम्मि उदयट्ठिदीदो अणंतरोवरमट्टिदिविसेसम्म णिसित्तपदेस पिंडादो विदियसमये तम्मि चेव ट्ठिदिविसेसे उदीरणासरूवेण णिवदमाणपदे सपिंडमसंखेज्जदिभागमेत्तं होदि । एदं पुण असंखेज्जदिभागमेत्तदव्वं पढमसमये उदयम्मि पदिदपदेसग्गादो असंखेज्जगुणं भवदि । तेण कारणेण उदीरणासवेण विदमाणपदेसपिंडादो ट्ठिदिक्खयेण पविसमाणपदेसपिंडो सव्वत्थासंखेज्जगुणो चेव होदि ति णिच्छओ कायव्वो । संपहि एदेण विहाणेण पढमसमयम्मि णिसित्तपदेस - पिंडस्वरि विदियसमयम्मि णिसिंचमाणपदेसग्गं द्विदिं पडि असंखेज्ज्जदिभागमेत्तं चैव जदि भवदि तो गुणसेढिपदे सग्गमसंखेज्जगुणं कथं होदि ति भणिदे बुच्चदे - विदियसमयम्मि असंखेज्जगुणकमेण गुणसेटिं करेमाणस्स पढमट्ठिदीए चरिमट्ठिदीदो तदणंतर रिट्टिी संपहि गुणसेढीए चरिमा भवदि । तिस्से ट्ठिदीए पदेसविंडो पढमसम - मि कदगुणसेचिरिमपदेसग्गादो असंखेज्जगुणो भवदि । एस विधी जत्थ अवदिगुढीणिक्खेव तत्थ दट्ठव्वो ।
जानेवाला प्रदेशपिण्ड परिणामोंके माहात्म्यवश असंख्यातगुणा होता है। इस कारण दूसरे समय में उदयसे उसी समयमें उदीरणाको प्राप्त हुआ द्रव्य असंख्यातगुणा क्यों नहीं होता ?
समाधान -- ऐसे कहनेपर असंख्यातगुणा नहीं होता है,
क्योंकि प्रथम समय में उदयस्थितिसे अनन्तर उपरिम स्थितिविशेषमें निक्षिप्त हुए प्रदेशपिण्डसे दूसरे समय में उसी स्थितिविशेषमें उदीरणारूपसे निक्षिप्त होनेवाला प्रदेशपिण्ड असंख्यातवें भागप्रमाण होता है । परन्तु यह असंख्यातवें भागप्रमाण द्रव्य प्रथम समय में उदय में प्राप्त हुए प्रदेशपु जसे असंख्यातगुणा होता है। इसकारण उदीरणारूप से निक्षिप्त होनेवाले प्रदेशपिण्डसे स्थितिक्षयसे प्रवेश करनेवाला प्रदेशपिण्ड सर्वत्र असंख्यातगुणा ही होता है ऐसा निश्चय करना चाहिये ।
शंका - अब इस विधि से प्रथम समय में निक्षिप्त हुए प्रदेशपिण्डके ऊपर दूसरे समय में निक्षिप्त किया जाने वाला प्रदेशपुंज प्रत्येक स्थितिके प्रति असंख्यातवेंभाग प्रमाण हो यदि होता है तो गुणश्रेणि प्रदेश' असंख्यातगुणा कैसे होता है ?
समाधान - ऐसी आशंका होनेपर कहते हैं—दूसरे समय में असंख्यातगुणक्रमसे गुणश्रेणि करनेवाले जीवके प्रथम स्थितिकी अन्तिम स्थितिसे तदनन्तर उपरिम स्थिति वर्तमान गुणश्रेणिमें अन्तिम होती है । उस स्थितिका प्रदेशपिण्ड प्रथम समयमें की गई गुणश्रेणिके अन्तिम प्रदेशपु जसे असंख्यातगुणा होता है । यह विधि, जहाँ अवस्थित गुणश्रेणिनिक्षेप होता है, वहां जानना चाहिये ।