Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलास हिदे कसाय पाहुडे
[ चारित्तक्खवणा
यंतेण' असंखेज्जगुणाए सेढीए दट्ठव्वं । एतदुक्तं भवति किडीवेदगस्स खवगस्स उदयावलियन्मंतरे जं पदेसग्गमुवलब्भदि तमुदयट्ठिदीए थोवं होतॄण तत्तो जहाकममसंखेज्जगुणाए सेटीए दव्वं जाब चरिमावलियउदयट्टिदि त्ति । किं कारणं ? उदयादि गुणढी ओडियण त्तिस्स तस्स तहाभावसिद्वीए णिप्पडिबंधमुवलंभादो त्ति उदयावलियबाहिरे व जाब गुणसेढीसीमयं ताव असंखेज्जगुणाए सेढीए पदेसग्गमुवलब्भदे | किंतु तत् ण विवयं; उदयावलियपविङ्कं चैव पदेसग्गमहिकिच्च पयदप्पा बहुअपरूवणाए अवयारिदत्तादो। एत्थ गाहापुव्वद्धे दोण्ह च सहाणं पओगो पादपूरणट्ठो दट्ठब्वो, तव्चदिरेगेण तस्स पओजणंतराणुवलंभादो | संपहि एवंविहमेदस्स गाहासुत्तस्स अत्थं विहासेमाणो उवरिमं विहासागंथमाढवे -
* विहासा ।
* तं
$ १९१ सुगमं । जहा ।
$ १९२ सुगमं ।
* जमावलियपविद्धं पदेसग्गं तमुदये थोवं, बिदियट्ठिदीए असंखेज्जगुणं; एवमसंग्वेज्जगुणाए सेढीए जाव सविस्से आवलियाए ।
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हैं, यह उक्त कथनका तात्पर्य है । 'नियमसा' निश्चयसे ही 'उदयादिपदेसग्गं' उदयसे लेकर वह प्रदेश'ज' गुण गणणा दियंतेण' असंख्यातगुणीसे श्रेणिरूपसे जानना चाहिये । इस कथनका यह तात्पर्यं है— कष्टिवेदक क्षपकके उदयावलिके भीतर जो प्रदेशपुंज उपलब्ध होता है वह उदय स्थिति में सबसे थोड़ा होकर वहाँसे आवलिकी अन्तिम उदयस्थितितक यथाक्रम असंख्यातगुणी श्रेणिरूपसे जानना चाहिये, क्योंकि उदयादिगुणश्रेणिमें अपकर्षण करके निक्षिप्त हुए प्रदेशपु का उस प्रकार सिद्धि होनेमें कोई प्रतिबन्ध नहीं पाया जाता । उदयावलि बाहर भी गुणश्रेणिशीर्षतक असंख्यात - गुणी श्रेणिरूपसे प्रदेश पुंज उपलब्ध होता है । किन्तु उसकी यहाँ पर विवक्षा नहीं है क्योंकि उदावलिमें प्रविष्ट हुए प्रदेशपुजको ही अधिकृत कर यहाँ पर प्रकृत अल्पबहुत्वका अवतार हुआ है । यहाँ इस गाथा पूर्वार्ध में दो 'च' शब्दों का प्रयोग पादपूरणके लिये जानना चाहिये क्योंकि उसके सिवाय उन दोनों 'च' शब्दोंका दूसरा प्रयोजन नहीं पाया जाता । अब इस गाथासूत्र के इस प्रकारके अर्थकी विभाषा करते हुए आगे के विभाषाग्रन्थको आरम्भ करते हैं
* अब इस भाष्यगाथाकी विभाषा करते हैं ।
१९१ यह सूत्र सुगम है ।
* वह जैसे ।
१९२ यह सूत्र सुगम है ।
* जो प्रदेशपुंज उदयावलिमें प्रविष्ट हुआ है वह उदय (स्थिति) में सबसे थोड़ा है । द्वितीय स्थिति में प्रविष्ट हुआ प्रदेशपुंज असंख्यातगुणा है । इस प्रकार उत्तरोत्तर असख्यागुणो श्रेणिरूपसे सम्पूर्ण आवलिमें जानना चाहिगे ।
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