Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
गा० २१७-२१८ ]
$ १२४ एवं विदियमूलगाहाए अत्थविहासणं समाणिय संपहि जहावसरपत्ताए तदियमूलगाहाए अत्यविहासणं कुणमाणो तदवसरकरणट्ठमुवरिमं पचंधमाढवे -- * एत्तो तदिया मूलगाहा । $ १२५ सुगमं । * तं जहा ।
$ १२६ सुगमं ।
५३
* (१६५) जं जं खवेदि किहिं हिदि- अणुभागेसु के सुदीरेदि । संहृदि
किहिं से काले तासु अण्णासु ।। २१८ ।। १२७ एसा तदियमूलगाहा किट्टीसु खविज्जमाणीसु तदवत्थाए णिरुद्धसंगहकिट्टीविसए डिदि - अणुभागोदीरणासंकमाणं बंधसहगदाणं पवृत्तिविसेसावहारणट्ठमोइण्णा | संपहि एदिस्से अवयवत्थो वुच्चदे । तं जहा - 'जं जं खवेदि किट्टि' एवं भणिदे जं जं संगहकिट्टि खवेदि तं तं ट्ठिदि - अणुभागेसु किंभूदेसु उदीरेदि किमविसेसेण सव्वेस ठिदिविसेसेसु अणुभागविसेसेसु च उदीरणा पयट्टदि आहो अत्थि को वि तत्थ विसेसणियमो त्ति पुच्छिदं होइ । एवमेसो गाहापुव्वद्धे सुत्तत्थसमुच्चओ |
I
२४ इस प्रकार दूसरी मूल गाथाके अर्थका विशेष व्याख्यान समाप्त करके अब यथावसर प्राप्त तीसरी मूल गाथाके अर्थका विशेष व्याख्यान करते हुए उसका अवसर उपस्थित करनेके लिये आगे प्रबन्धको आरम्भ करते हैं
* इसके बाद तीसरी मूल गाथा है ।
$ १२५ यह सूत्र सुगम है ।
* वह जैसे ।
$ १२६ यह सूत्र भी सुगम है ।
* ( १६५ ) जिस-जिस संग्रहकृष्टिका क्षय करता है, 'उस-उस कृष्टिको किसकिस प्रकारके स्थिति और अनुभागों में उदीरित करता है । विवक्षित कृष्टिको अन्य कृष्ट में संक्रमण करता हुआ किस-किस प्रकारके स्थिति और अनुभागोंसे युक्त कृष्टिमें संक्रमण करता है । तथा विवक्षित समय में जिस स्थिति और अनुभागयुक्त कृष्टियों में उदीरणा-संक्रमण आदि किये हैं, अनन्तर समय में क्या उन्हीं कृष्टियों में उदीरणासंक्रमण आदि करता है, अथवा अन्य कृष्टियोंमें करता है ।। २१८ ॥
$ १२७ यह तीसरी मूल गाथा कृष्टियोंके क्षयको प्राप्त होते हुए उस अवस्था में विवक्षित संग्रह कृष्टिके विषय में बन्धके साथ होनेवाले स्थिति और अनुभागोंकी उदीरणा और संक्रमणकी प्रवृत्तिविशेषका अवधारण करनेके लिये अवतोर्ण हुई है । अब इसके प्रत्येक चरणका अर्थ कहते हैं । वह जैसे—'जं जं खवेदि किट्टि' ऐसा कहने पर जिस-जिस संग्रह कृष्टिका क्षय करता है उस उस संग्रह कृष्टिका किस-किस प्रकारके स्थिति अनुभागों में उदीरित करता है ? क्या सामान्य से सब स्थितिविशेषों में और अनुभागविशेषोंमें उदीरणा प्रवृत्त होती है या वहाँ कोई विशेष नियम है ? यह पूँछा गया है । इसप्रकार यह गाथाके पूर्वार्ध में सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है |