Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० २०८-२०९]
* तं जहा।
४४ सुगमं । * (१५६) चरिमो बादररागो णामागोदाणि वेदणीयं च ।
वस्सस्संतो बंधदि दिवसस्संतो य जं सेसं ॥२०९।। $ ४५ एसा विदियगाहा अणियट्टिकरणचरिमसमये मोहणीयवज्जाणं सम्वेसिं कम्माणं द्विदिबंधपमाणावहारणट्ठमोइण्णा, परिप्फुडमेवेत्थ तहाविहत्थणिद्देसदेसणादो। एदस्स च गाहासुत्तस्स अवयवत्थपरूवणा सुगमा । संपहि एदस्सेव गाहासुत्तत्थस्स फुडीकरणट्ठमुवरिमं विहासागंथमाह ।
* विहासा।
४६ सुगमं । * जहा। ४७ सुगमं ।
* वह जैसे । ६४४ यह सूत्र सुगम है।
* नौवें गुणस्थानमें अन्तिम समयवर्ती बादर साम्परायिक क्षपक नामकर्म, गोत्रकर्म और वेदनीयकर्मको एक वर्ष के अन्तर्गत बाँधता है और जो शेष तीन घातियाकर्म (ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्म) हैं उनको एक दिवसके अन्तर्गत बाँधता है ॥२०९॥
६४५ यह दूसरी भाष्यगाथा अनिवृत्तिकरण क्षपकके अन्तिम समयमें मोहनोयकर्मको छोड़कर शेष सभी कर्मोके स्थितिबन्धके प्रमाणका अवधारण करनेके लिये अवतरित हुई है, क्योंकि स्पष्टरूपसे ही इस भाष्यगाथामें उस प्रकारके अर्थका निर्देश देखा जाता है । किन्तु इस गाथासूत्र के अवयवोंकी अर्थप्ररूपणा सुगम है। अब इसी गाथासूत्रको स्पष्ट करनेके लिये आगेके विभाषा ग्रन्थको कहते हैं
* अब इस भाष्यगाथाकी विभाषा करते हैं। ६ ४६ यह सूत्र सुगम है। * वह जैसे । ६ ४७ यह सूत्र सुगम है।