Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० २१२]
* एत्तो पंचमीए भासगाहाए समुक्त्तिणा। . ६ ६६ सुगमं । । * (१५९) जसणाममुच्चगोदं वेदयदि णियमसा अणंतगुणं ।
गुणहीणमंतरायं से काले सेसगा भज्जा ॥२१२॥ ६६७ एसा वि पंचमी भासागाहा 'के व वेदयदि अंसे' इच्चेवं मूलगाहासुत्तावयवमस्सियूण अणुभागोदयविसयमेव विसेसंतरं पदुप्पाएदुमोइण्णा । तं कध ? 'जसणाममुच्चगोदं' एवं भणिदे जसगित्तिणाममुच्चागोदं च 'वेदयदे' अणुहवइ, 'णियमसा' णिच्छयेणेव 'अणंतगुणं समए समए अणंतगुणवड्ढीए दोण्हमेदेसि कम्माणमणुभागं वेदेदि त्ति वृत्तं होइ । कुदो एवमिदि चे १ सहाणं पयडीणं विसोहिवड्डीए अणुभागोदयस्स अणंतगुणवड्ढेि मोत्तण पयारंतरासंभवादो। एदं च जसगित्तिउच्चागोदवयणं देसाभासयं तेण जत्तियाओ सुहपयडीओ परिणामपच्चइयाओ तासिं सव्वासिमेवाणुभागोदयो पडिसमयमणंतगुणवड्डीए एदस्स खवगस्स पयदि त्ति णिच्छओ कायवो ।
* इससे आगे पाँचवीं भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं । ६ ६६ यह सूत्र सुगम है।
* (१५९) यशःकीर्ति नामकर्म और उच्चगोत्रकर्मका यह क्षपक प्रतिसमय नियमसे अनन्तगुणवृद्धिरूपसे वेदन करता है, अन्तरायकर्मको यह क्षपक प्रतिसमय अनन्तगुणहानिरूपसे वेदन करता है तथा उक्त कर्मोंसे जो कर्म शेष बचे हैं उनको यह क्षपक प्रतिसमय मजनीयरूप से अर्थात् छह वृद्धि, छह हानि में से कोई एक वृद्धि और कोई एक हानिरूपसे तथा अवस्थितरूपसे वेदन करता है ॥२१२।।
६६७ यह पाँचवीं गाथा भी 'के व वेदयदि अंसे' इस प्रकार मूल गाथासूत्र के अन्तिम चरण का आश्रय करके अनुभागसम्बन्धी उदयविषयक विशेषताका ही प्रतिपादन करनेके लिये अवतीर्ण हुई है।
शंका--वह किस प्रकार ?
समाधान-क्योंकि 'जसणाममच्चगोदं' ऐसा कहने पर यशःकोति नामकर्म और उच्चगोत्रको प्रतिसमय 'वेदयदे' अनुभवता है, "णियमसा' निश्चयसे ही 'अणंतगुणं' अनन्तगुणवृद्धिरूपसे, उक्त दोनों कर्मोंके अनुभागका वेदन करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका--ऐसा किस प्रकार है ?
समाधान- क्योंकि शुभ प्रकृतियोंको विशुद्धिकी वृद्धि के कारण अनुभाग के उदयकी अनन्तगुणवृद्धिको छोड़कर और दूसरा प्रकार सम्भव नहीं है। किन्तु यह यशःकीर्ति नामकर्स वचन और उच्चगोत्रकर्म वचन देशामर्षक है, इसलिये जितनी परिणामप्रत्ययरूप शुभप्रकृतियाँ हैं उन सबके ही अनुभागका उदय इस क्षपकके प्रतिसमय अनन्तगुणवृद्धिरूपसे प्रवृत्त होता है ऐसा यहाँ निश्चय करना चाहिये।