Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
- [चारित्तक्खवणा ८१ दसममूलगाहाविहासणाणंतरमेत्तो जहावसरपत्तो एक्कारसमी मूलगाहा विहासियव्वा त्ति वुत्तं होइ। * १६० किट्टीकदम्मि कम्मे के वीचारो दु मोहणीयस्स ।
सेसाणं कम्माणं तहेव के के दु वीचारो ॥२१३।। ६८२ एसा एक्कारसमी मूलगाहा किट्टीवेदगावत्थाए वट्टमाणस्स खवयमोहणीयस्स णाणावरणादिसेसकम्माण च द्विदिघादादिकिरियावियप्पा एत्तियमेत्ता होंति त्ति जाणावणट्ठमोइण्णा । संपहि एदिस्से अवयवत्थपरूवणं कस्सामो । तं जहा'किट्टीकदम्मि कम्मे' पुव्वमकिट्टीसरूवे चदुसंजलणाणुभागसंतकम्मे गिरवसेसं किट्टीसरूवेण परिणामिदे तदवत्थाए पढमसमयकिट्टीवेदगभावेण वट्टमाणस्सेदस्स खवगस्स 'के वीचारा दु' केत्तिया खलु किरियावियप्पा द्विदिघादादिलक्खणा मोहणीयस्स संमवंति, 'सेसाणं वा कम्माणं' णाणावरणादीणं तहेव तेणेव पयारेण पादेक्कं णिहालिज्जमाणा 'के के दु वीचारा केत्तिया' कत्तिया किरियाविसेसा संभवंति त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थसंबंधो । एत्थ 'वीचारा' त्ति वुत्ते द्विदिघादादिकिरियावियप्पा घेत्तव्वा । संपहि एदिस्से सुत्तगाहाए अत्थविहासणं कुणमाणो उवरिमपबंधमाढवेइ
* एदिस्से भासगाहा जत्थि ।
$ ८१ दसवीं मूल गाथा का विशेष व्यख्यान करने के अनन्तर आगे यथावसर प्राप्त ग्यारहवीं मूल गाथाकी विभाषा करनी चाहिये यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* (१६०) अकृष्टिस्वरूप संज्वलन कर्मोंके कृष्टिस्वरूप किये जानेपर कितनेमोहनीयकर्मके स्थितिघात आदिरूप कितने-कितने क्रियाभेद होते हैं तथा इसी प्रकार शेषकर्मोंके स्थितिघात आदिरूप कितने-कितने क्रियाभेद होते हैं ॥२१३।।
८२ यह ग्यारहवीं मूलगाथा कृष्टिवेदकरूप अवस्थामें विद्यमान क्षपक जीवके संज्वलन मोहनीयके और ज्ञानावरणादि शेषकर्मोंके स्थितिघात आदिरूप इतने क्रियाभेद आदि होते हैं इस बात का ज्ञान करानेके लिये आई है। अब इस मूलगाथाके प्रत्येक पदके अर्थकी प्ररूपणा करेंगे। यथा-पहले चार संज्वलनोंके अकृष्टिस्वरूप अनुभागसत्कर्मके पूरा कृष्टिस्वरूपसे परिणमा देने पर उस अवस्थाके प्रथम समयमें कृष्टियोंके वेदकरूपसे विद्यमान इस क्षपकके 'के वीचार। दु' मोहनीय कर्मके स्थितिघात आदि लक्षणवाले नियमसे कितने क्रियाभेद होते हैं तथा 'सेसाणं वा कम्माणं ज्ञानावरणादि शेष कर्मोंके तहेव' उसी प्रकार से प्रत्येक के देखे गये 'के के दु वीचारा' कितने-कितने क्रियाभेद सम्भव हैं इस प्रकार यह यहाँ पर इस मूलगाथा सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्ध है। इस मूल गाथामें 'वीचारा' ऐसा कहने पर स्थितिघात आदि क्रियाभेदोंको ग्रहण करना चाहिये। अब इस मूल सूत्र गाथाके अर्थका विशेष व्याख्यान करते हुए आगेके प्रबन्धको आरम्भ करते हैं
* इस मूलगाथास्त्रकी भाष्यगाथा नहीं है।