Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० २१३ ]
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९ ८३ किमट्ठमेदिस्से मूलगाहाए सेसमूलगाहाणं व भासगाहा गाहासुत्तयारेण ण पठिदात्तिणासंकणिज्जं सुगमत्थपरूवणाए पडिबद्धत्तादो । एदिस्से मूलगाहाए भागाभावे व अत्थपडिबोहो काढुं सक्किज्जदि त्ति एदेणाहिप्पाएणेत्थ भासगाहाए अणुवादो । तदो मूलंगाहाणुसारेणेव विहाणमेदिस्से कस्सामो भण्णमाणो इदमाह -
* विहासा ।
६८४ सुगमं ।
३७
* एसा गाहा पुच्छासुत्त ।
९८५ सुगमं । एवं पुच्छदि, किट्टीसु कदासु के वीचारा मोहणीयस्स, सेसाणं कम्माण के वीचारा, एवंविहो पुच्छाणिद्देसो एदम्मि गाहासुत्तम्मि परिबद्धो त्ति जाणाविदमेदेण सुत्तेण । संपहि एवमेदीए गाहाए पुच्छिदत्थविसये णिण्णय विहाणट्ठमुत्तरसुत्तं भणइ
* तदो मोहणीयस्स पुव्वभणिदं ।
$ ८३ शंका- इस मूलगाथाकी शेष मूलगाथाओंके समान गाथासूत्रकारने भाष्यगाथा क्यों नहीं पठित की ?
समाधान – ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि यह मूलगाथा सुगम अर्थको प्ररूपणासे सम्बन्ध रखती है, कारण कि इस मूलगाथाकी भाष्यगाथा नहीं होने पर भी उसके अर्थका ज्ञान करना शक्य है । इस प्रकार इस अभिप्रायसे इस मूलगाथाको भाष्यगाथा उपदिष्ट नहीं की । इसलिये मूलगाथा के अनुसार ही इसका व्याख्यान करेंगे ऐसा कथन करते हुए इस विभाषा सूत्रको कहते हैं ।
-* अब इस मूलगाथाकी विभाषा करते हैं ।
९ ८४ यह सूत्र सुगम है ।
* यह मूलगाथा पृच्छासूत्र है । ।
$ ८५ यह सूत्र सुगम है । यहाँ यह पूछते हैं कि संज्वलन मोहनीय कर्मकी कृष्टियों में कितने क्रियाभेद होते हैं तथा शेष कर्मोंके भी कितने क्रियाभेद होते हैं इस प्रकार इस पृच्छाका निर्देश इस गाथासूत्र से सम्बन्ध रखता है, इस प्रकार इस सूत्रद्वारा इस बातका ज्ञान कराया गया है । अब इस प्रकार इस मूल गाथाद्वारा पूछे गये अर्थके विषयमें निर्णय करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं* मोहनीय कर्मके स्थितिघात आदि क्रियामेद पहले ही कह आये हैं ।
१. पुच्छादिकिट्टीसु प्रे० का० ।