Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलास हिदे कसा पाहुडे
* एत्तो चउत्थीए भासगाहाए समुक्कित्तणा ।
६५४ सुगमं ।
[ चारित्तक्खवणा
* (१५८) अध मदि-सुद-आवरणे' च अंतराइए च देसमावरणं । लय वेदयदे सव्वावरणं अलद्धी य ॥२११॥ ९ ५५ एसा चउत्थी भासगाहा णाणावरणदंसणावरण - अंतराइयाणं तिण्डं मूलपडणं जाओ उत्तरपयडीओ खओवसमसत्तिसहगदाओ तासिमणुभागोदयो एदस्स किट्टीaaraaree देघादीओ सव्वधादीओ वा होदूण पंयहृदि त्ति एदस्स अत्थविसेसस्सपदुपायट्टमोइण्णा । संकामणपट्ठवगस्स विदियभासगाहासंबंघेण पुव्वमेवंविहो अत्थविसेसो सवित्थरं विहासिदो चेव, पुणो किमदुमेहिमाढविज्जदिति णासंका कायव्वा, किट्टीवेदगसंबंघेण विसेसिथूण पुणो वि तप्परूवणाए दोसाणुवलभादो । एदिस्से चउत्थमासगाहाए किंचि अवयवत्थपरूवणं कस्सामो । तं जहा - अथेत्यय
* इससे आगे चौथे भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं ।
8 ५४ यह सूत्र सुगम है ।
* जो लब्धिसंज्ञावाले (क्षयोपशमसंज्ञक ) मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण और पाँच अन्तराय कर्म हैं तथा (भाष्यगाथासूत्र में आये हुए 'च' पदसे गृहीत अवधिज्ञानावरण, मन:पर्ययज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण और अवधिदर्शनावरण कर्म हैं) उन सबका देशावरणरूपसे वेदन करता है; तथा अलब्धि संज्ञावाले जिन कर्मोंका क्षयोपशम नहीं हुआ है उन कर्मोंका सर्वघातिरूपसे वंदन करता है || २११ ।।
§ ५५ यह चीथो भाष्यगाथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तोन मूल प्रकृतियों की क्षयोपशमशक्ति से युक्त जो उत्तरप्रकृतियाँ हैं उनके अनुभागका उदय इस कृष्टिवेदक क्षपक के देशघातिरूप होकर प्रवृत्त होता है या सर्वघातिरूप होकर प्रवृत्त होता है इस प्रकार इस अर्थविशेषका प्रतिपादन करनेके लिये अवतीर्ण हुई है।
शंका--संक्रामण प्रस्थापकके दूसरी भाष्यगाथाके सम्बन्धसे पहले हो इस प्रकारके अर्थविशेषकी विस्तारके साथ विभाषा कर आये हैं, इसलिये इस समय इसको पुनः किसलिये आरम्भ किया जाता है ?
समाधान - ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि कृष्टिवेदक के सम्बन्धवश विशेषरूपसे फिर भी उसके प्ररूपण करनेमें कोई दोष नहीं पाया जाता ?
१. अघ सुद- मदिआवरणे दि० ।
२. लद्वी यं प्रे० का० ।