Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गा० २०८ ]
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९ ३६ सुगमं ।
* एदीए गाहाए तिन्हं घादिकम्माणं द्विदिबंधो च अणुभागबंधो च
णिहिट्टो |
६ ३७ सुगममेदं पि सुतं; परिष्फुडमेवेत्थ तदुभयणिद्द सदसणादो ।
* तं जहा ।
९३८ सुगमं ।
* कोहस्स पढमकिडिचरिमसमयवेदगस्स तिरहं घादिकम्माणं ट्ठिदिबंधो संखेज्जेहिं वस्ससहस्सेहिं परिहाइदूण दसरहं वस्साणमंतो जादो |
९ ३९ सुगममेदं पि गाहापुव्वद्ध पडिबद्धं विहासासुत्तमिदि ण एत्थ किंचि वक्खाणेयव्वमत्थि ।
* अथाणुभागबंधो तिरहं घादिकम्माणं किं सव्वधादी देसघादित्ति ? $ ४० सुगममेदं पुच्छावक्क ।
९ ३६ यह सूत्र सुगम है ।
* इस भाष्यगाथा द्वारा तीन घातिकर्मोंके स्थितिबन्ध और अनुभागबन्धका निर्देश किया गया है ।
९ ३७ यह सूत्र भो सुगम है, क्योंकि स्पष्टरूपसे ही इस भाष्यगाथामें उन दोनों विषयों का निर्देश देखा जाता है ।
* वह जैसे ।
९ ३८ यह सूत्र सुगम है ।
* क्रोध संज्वलनकी प्रथम कृष्टिके अन्तिम समयवर्ती वेदकके शेष तीन घातिकर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षोंसे घटकर दस वर्षके भीतर हो जाता है ।
8 ३९ गाथा पूर्वार्धसे सम्बन्ध रखने वाला यह विभाषासूत्र भी सुगम है, इसलिये यहाँ इस सम्बन्ध में कुछ भी व्याख्यान करने योग्य नहीं है ।
* तीन घातिकर्मोंका अनुभागबन्ध क्या सर्वघाति होता है या देशघाति होता है ।
९ ४० यह पृच्छा वाक्य- सुगम है ।