Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ चरितक्खवणा
$१० सुगमं ।
* पढमसमय सुहुमसांपराइयस्स मोहणीयस्स ठिदिसंतकम्मं संखेज्ज
गुणं ।
$ ११ को गुणगारो ? तप्पा ओग्गसंखेज्जरूत्राणि । संपहि कधमेदमध्याबहुअं पयदत्थसाहणमिदि चे ? बुच्चदे -- जेणेत्थ अंतरायामादो पढमट्ठिदिखंडयं संखेज्ज - गुणं जादं तेण पढमटिठदिखंडय चरिम फालिदव्वादो अंतरदिट्ठदिमेत्तगोपुच्छाओ
तूण अंतर दिसु विदियट्ठिदीए सह एयगोवुच्छायारेण णिसिंचिदुं दव्वमत्थि - त्ति जाणावणमुहेण पयदत्थसाहणमेदमप्पाबहुअं जादं । अण्णहा अंतरट्ठदीसु पढमट्ठिदिखंड यायामादो बहुगीसु संतीसु तत्थेव गोपुच्छायाराणुववत्तीदोति ।
$ १२ एतो पहुडि विदियट्ठिदिखंडयेसु वि एसो चेव दिस्समाणपदेसग्गस्स सेढिपरूवणा ण्व्विा मोहमणुगतव्या, विसेसाभावादो। णवरि गुणसेढिसीसए दिस्समाणदव्वमेत्तो पाए असंखेज्जगुणं ण होदि, विशेसाहियं चेत्र होदि । तत्थ कारणपरूवणा जहा दंसणमोहक्खवणाए सम्मत्तस्स अट्ठवस्सट्ठिदिसंतकम्मादो उवरि मग्गिदा तहा चैव मग्गिदूण गेण्हियव्वा । एवमेतिएण सुत्तपबंघेण सुहुमसांपराइय
$ १० यह सूत्र सुगम है ।
* प्रथम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकके मोहनीय कर्मका स्थितिसत्कर्म संख्यातहै
गुणा
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$ ११ गुणकार क्या है ? तत्प्रायोग्य संख्यातरूप गुणकार है ।
शंका- - इस समय यह अल्पबहुत्व प्रकृत अर्थका साधन कैसे करता है ?
समाधान — कहते हैं - अतः यहाँ अन्तरायामसे प्रथम स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा हो गया है, इसलिये प्रथम स्थितिकाण्डकके अन्तिम फालिद्रव्यसे अन्तर स्थितिप्रमाण गोपुच्छाओं को ग्रहण करके अन्तर स्थितियों में द्वितीय स्थिति के साथ एक गोपुच्छाकाररूपसे सिंचित करने के लिये द्रव्य है इस प्रकार के ज्ञान कराने के द्वारा प्रकृत अर्थका साधन करनेवाला यह अल्पबहुत्व हो जाता है । अन्यथा अन्तरस्थितियोंके प्रथम स्थितिकाण्डकके आयामसे बहुत होनेपर उन्हीं में गोपुच्छाकारकी उत्पत्ति नहीं हो सकती ।
$ १२ इससे आगे द्वितीय स्थितिकाण्डकमें भी यही दिखनेवाले प्रदेशपुंजको श्रेणि प्ररूपणा व्यामोहको छोड़कर जान लेनी चाहिये क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है । इतना विशेषता है कि गुणश्रेणिशीर्ष में दिखनेवाला द्रव्य इससे प्रायः असंख्यातगुणा नहीं होता है, किन्तु विशेष अधिक हो होता है । इस विषय में कारणका कथन जिस प्रकार दर्शनमोहनीयको क्षपणा में सम्यक्त्वकी आठ वर्ष प्रमाण स्थितिसत्कर्म से ऊपर अनुसन्धान करके कह आये हैं उसी प्रकार अनुसन्धान करके यहाँ ग्रहण कर लेना चाहिये । इस प्रकार इतने सूत्रप्रबन्धके द्वारा सूक्ष्मसाम्परायिकके प्रथम समय से