Book Title: Kasaypahudam Part 16
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
सेटिं मोतृण केण कारणेण सेसिगासु ठिदीसु एयगोपुच्छासेढी जादा ति एदस्स साहणट्ठमिमाणि अप्पा बहुअपदाणि ।
सुगमं ।
* तं जहा ।
६ सुगमं ।
* सव्वत्थोवा सुहुमसांपराइयद्धा ।
$ ७ सुगमं ।
* पढमसमयसुहुमसांपराइयस्स मोहणीयस्स गुणसेढिणिक्खेवो विसेसाहियो ।
९ ८ केत्तियमेत्तो विसेसो ? सुहुमसांपराइयद्राए संखेज्जदिभागमेत्तो । * अंतरद्विदीयो संखेज्जगुणा ।
१९ सुगमं ।
* सुहुमसांपराइयस्स पढमट्ठिदिखंडयं मोहणीये संखेज्जगुणं ।
३
गुणश्रेणिको छोड़कर किस कारण से शेष स्थितियोंमें एक गोपुच्छाश्रेणि हो गई, इस प्रकार इस अर्थका साधन करनेके लिये अल्पबहुत्वपद जानने योग्य हैं ।
$ ५ यह सूत्र सुगम है ।
* वह अल्पबहुत्व इस प्रकार है ।
$ ६ यह सुगम है ।
* सूक्ष्मसाम्परायिकका काल सबसे अल्प है ।
६७ यह सूत्र सुगम है ।
* सूक्ष्म सांम्परायिकके प्रथम समय में मोहनीय कर्मका गुणश्रेणिनिक्षेप विशेष अधिक है।
$ ८ विशेषका प्रमाण कितना है ? सूक्ष्मसाम्परायिकके कालके संख्गातवें भागप्रमाण है । * अन्तर स्थितियाँ संख्यातगुणी हैं ।
$ ९ यह सूत्र सुगम है ।
* सूक्ष्मसाम्परायिकके मोहनीय कर्मका प्रथम स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है।