Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा• २२ ]
हिदिविहत्तीए कालो ४३. वेदग० मोह० जह० क० ? अण्णद० चरिमसमयअक्खीणदंसणमोहणीयस्स जह• हिदिसंतकम्मं । उवसम० मोह० जह० क. ? अण्ण उवसमसेढीए हिदिघादं कादूण अधहिदिगलणाए च गालिय से काले वेदयसम्मादिट्टी होहिदि त्ति जो हिदो तस्स जह. हिदिसंतकम्मं । सासण• मोह० ज० कस्स ? अण्णद० चरिमसमय. सासण. तस्स जह० हिदिसंतकम्मं । सम्मामि० मोह० ज० क० १ अण्णद० चउवीससंतकम्मिश्रो जो चरिमसमयसम्मामिच्छादिट्टी तस्स जह० द्विदिसंतकम्मं ।
एवं सामित्त समत्त। ___४४. कालो दुविहो-जहण्णो उक्स्सो चेदि । तत्थ उक्कस्सए पयदं । दुविहो णिद्देसो-अोघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण मोह० उक्कस्सहिदी केवचिरं कालादो होदि ? जह० एगसमो , उक्क० अंतोमुहुत्तं । अणुक्क० केवचिरं ? जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा। एवं मदि-मुदअण्णाण०.असंजद०-अचक्खु०भव०-अभव-मिच्छादि० त्ति वत्तव्यं ।
विशुद्धिसंयत जीवोंके समान जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि पीतलेश्या और पद्मलेश्यावाले जीवके मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व कहते समय अन्तिम समयमें पीतलेश्या और पद्मलेश्या प्राप्त कराके उसका कथन करना चाहिये।
६४३. वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व किसके होता है ? जिसके दर्शनमोहनीयका क्षय नहीं हुआ है ऐसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीवके अन्तिम समयमें मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व होता है। उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व किसके होता है ? जो उपशमसम्यग्दृष्टि जीव उपशमश्रेणीमें स्थितिघात करके और अधस्तनस्थिति गलनाके द्वारा स्थितिको गला कर तदनन्तर समयमें वेदकसम्यग्दृष्टि होगा उसके मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व होता है। सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व किसके होता है ? जो सासादनसम्यग्दृष्टि हुआ है उसके अन्तिम समयमें मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व होता है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व किसके होता है। चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जो जीव सम्यग्मिथ्यादृष्टि हुआ है उसके अन्तिम समयमें मोहनीयका जघन्य स्थितिसत्त्व होता है।
इस प्रकार स्वामित्वानुयोगद्वार समाप्त हुआ। ४४. काल दो प्रकारका है-जघन्यकाल और उत्कृष्ट काल । उनमेंसे पहले उत्कृष्ट कालका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उसमें से ओघकी अपेक्षा मोहनीयके उत्कृष्ट स्थितिसत्त्वका काल कितना है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। मोहनीयकी अनुत्कृष्ट स्थिति सत्त्वका काल कितना है ? जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है जिसका प्रमाण अनन्तकाल है। इसी प्रकार मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, भव्य, अभव्य और मिथ्यादृष्टि जीवोंके कहना चाहिये।
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