________________
अभिनन्दनीय पण्डितजी
अगरचन्द नाहटा, बीकानेर दिगम्बर समाजमें कुछ वर्षों पहले मुनि बहुत ही कम थे, पण्डितोंके द्वारा ही धर्म प्रचार अधिक रूपमें होता रहा है। भट्रारकोंने खब काम किया। इसी तरह पण्डित वर्गने भी जैनधर्म और शासनकी बहुत बड़ी सेवा की। गत ३५० वर्षों में उन्होंने खूब साहित्य निर्माण किया। जब प्राकृत और संस्कृतके जैन ग्रन्थ साधारण जनताके लिये समझाना बहुत कठिन हो गये, तो बहुतसे श्रावकों और पण्डितोंने हिन्दी टीकायें लिखकर उन्हें सर्व सुलभ बना दिया।
इधर ६०-७० वर्षों में पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी और पं० गोपालदासजी आदिके प्रयत्नसे गुरुकुल व विद्यालय खोले गये । इनसे सैकड़ों विद्वान तैयार हो गये और आज भी हो रहे हैं। स्याद्वाद विद्यालय वाराणसीसे अनेकों विशिष्ट विद्वान तैयार हए। उनमें पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं क्योंकि अनेकों वर्षों से वे वहीं रहकर शिक्षा और साहित्यकी विशिष्ट सेवा कर रहे हैं । विद्यालयके लिये उन्होंने खूब काम किया।
पं० कैलाशचन्द्रजीको दिगम्बर साहित्यका बड़ा विशाल व गहन अध्ययन है। उन्होंने बहुतसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थोंका सम्पादन व अनुवाद आदि किया है और जैनधर्म व साहित्यके स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखे हैं । इस तरहका इतना काम बहुत ही कम लोग कर पाते हैं । संख्या और गुणवत्ता-दोनों दृष्टियोंसे उनकी साहित्य-सेवा बहुत ही सराहनीय है।
मैंने पण्डितजीको अनेक बार लिखा कि आप श्वेताम्बर साहित्यका अध्ययन और भी बढ़ाइये । फिर निष्पक्ष दृष्टिसे दोनोंकी मान्यताओंमें कहाँ और क्या-क्या भेद है, उसका समाधान कैसे हो सकता है ? इस तरहका तुलनात्मक व विचारात्मक अध्ययन प्रस्तुत कीजिये । यह जैनधर्मकी बहुत बड़ी सेवा होगी क्योंकि यगकी मांग है कि दोनों सम्प्रदायोंमें सदभाव और एकता बढ़े। वर्तमान पीढ़ी दोनों सम्प्रदायोंमें जो अपनी-अपनी खींचातानी है, उसमें नहीं पड़ना चाहती, उसे अच्छा भी नहीं समझती। यदि हम भेदके कारणोंके निवारण सम्बन्धी ठोस कार्य करके समाजके सामने उपस्थित कर सद्भाव व समन्वयका मार्ग प्रशस्त करें और अपनी साम्प्रदायिक भावनाओंको मिटावें, दोनों प्रकारके साहित्यका अध्ययन बढ़ाकर अपनी व समाजकी वृद्धि करें, तो यह पण्डितजीके समान विद्वानोंकी नई पीढी व भावी पीढ़ीके लिये सर्वोत्तम देन होगी।
मूर्धन्य विद्वान्
___पं० नाथूलाल शास्त्री, अध्यक्ष विद्वत् परिषद्, इन्दौर, म० प्र० जैन समाज आज अपने मूर्धन्य विद्वान् सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, वाराणसीकी उच्चकोटिकी विद्वत्ता और उनकी निश्छल सेवाओंसे गौरवान्वित है । पंडितजीने स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसीके प्राचार्य एवं अधिष्ठाता पदसे सैकड़ों विशिष्ट विद्वानोंको तैयार करनेके साथ ही संस्थाके संचालनार्थ उसकी आर्थिक स्थिति दूर करनेका महत्त्वपूर्ण प्रयास किया है। पंडितजीने अनेक महत्त्वपूर्ण मौलिक ग्रन्थोंकी रचना और अनेक बड़े-बड़े महत्त्वपूर्ण मौलिक ग्रन्थोंका अनवाद व सम्पादन कर जैन साहित्यको समृद्ध बनाया है। सन् १९४४ में अखिल भारतीय दि० जैन विद्वत परिषद की स्थापनामें पण्डितजीका प्रमुख
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org