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आदर्श कीर्तिस्तम्भ
बी० माणिकचन्द्र नाहर, मद्रास पण्डित कैलाशचन्द्रजीका साधनामय, ज्ञाननिष्ठ और भोगोंसे विरत संयमी जीवन सम्पूर्ण जैन तरुण पीढ़ीके लिए आदर्श कीर्ति स्तम्भ है। आपके मुँहको स्मितता और प्रसन्न मुखमद्रा अंतरंगमें प्रवाहित आत्मानन्दके अविरल स्रोतका सूचक है। पण्डितजीके गुरुत्व, लेखकत्व और नेतृत्वसे भी बढ़कर उनका वक्तत्व है । आपके प्रत्येक भाषणमें अगाध सैद्धान्तिक और व्यावहारिक ज्ञानकी सुगन्ध रहती है।
इस सुअवसर पर आप पण्डितजीके निबंध संकलित कर पुस्तकाकार कैलाश निबन्धावलीके नामसे प्रकाशित करनेका प्रयास कीजियेगा।
विनम्रता और स्वाभिमानके ओजसे मण्डित पण्डित जी
डॉ. जयकिशन प्रसाद खण्डेलवाल, आगरा पूज्य एलाचार्य मुनि श्री विद्यानन्दजीके माध्यमसे पण्डितजीसे मेरी पहली भेंट १९६७ में मेरठमें महावीर जयंतीके अवसर पर हुई थी। महावीर जयन्तीके बाद पूज्य मुनिश्रीजीने पण्डितजीसे परिचय कराया। उनके सुवक्ता होनेका परिचय तो उनके भाषणसे मिल ही चुका था। संस्कृत शिक्षाके क्षेत्रमें पण्डितजीने स्याद्वाद महाविद्यालयके द्वारा जो एक मानदण्ड स्थिर किया था, उससे भी मैं पहले ही परिचित था । गंगाके पवित्र तट पर स्थापित यह महाविद्यालय गंगाके शैत्य और पावनत्वसे विभूषित था और पण्डितजीकी ज्ञान गरिमासे यह प्रथित यश वाला बना हुआ था।
पण्डितजीसे पहली भेंट यहीं तक सीमित न रही। मुझे एक कार्यवश उसी ट्रेनसे वाराणसी जाना था, जिससे वे वापिस लौट रहे थे । मैं उनके प्रति श्रद्धा भावसे अभिभूत था। पूज्य गुरुदेव विद्यानन्द मुनिने उनकी प्रशंसा की थी और पण्डितजीके सान्निध्यमें उसकी साक्षातताका अनुभव हो रहा था। वाराणसीमें उनके दर्शन स्याद्वादके प्राचार्यके रूपमें किये । निरन्तर शैक्षणिक कार्य, अध्ययन एवं लेखनमें व्यस्त रहते थे। उनके शिष्य उनका वात्सल्य प्राप्त कर अपनेको धन्य समझते थे। स्याद्वाद महाविद्यालयका शैक्षणिक वातावरण श्लाघनीय था ।
जैन समाजमें पण्डितजी अपने ज्ञान-विज्ञानके साथ ही आचार-विचारके लिये भी प्रसिद्ध रहे हैं । पण्डितजीने विनम्रताके साथ ही स्वाभिमानको कभी नहीं जाने दिया। उनके चेहरे पर ज्ञान एवं स्वाभिमान का तेज दिखलाई पड़ता है। पण्डितजीके प्रति मेरी सहज श्रद्धा बढ़ चली। फिर तो कई बार दिल्लीमें पूज्य गुरुदेव मुनिश्रीजीके सांनिध्यमें कार्यक्रम हुए जिनमें पण्डितजी मुख्य अतिथि बनकर आये थे। कई बार पण्डितजीको विभिन्न संस्थाओंके द्वारा पुरस्कृत करनेकी चर्चा चली किन्तु साधु समाजके प्रति अनन्य श्रद्धा रखने वाले पण्डितजीने उनके आशीर्वादको ही विशेष महत्त्व दिया। पण्डितजीके साथ पुनः एक बार घरेलू वातावरणमें दिल्लीमें भेंट हुई । वे प्रायः सुश्री विदुषी जयमालाजीके यहाँ ठहरते थे, वहीं एक बार मैं भी आमंत्रित था । पण्डितजीके वात्सल्यको प्राप्त कर मैं अभिभूत हो उठा। इतने महान् विद्वान् और सहज स्वभाव । उनके समीप जो भी क्षण बीते, उनमें मुझे उनकी आत्मीयताकी झलक मिली।
वे ज्ञानवृद्ध हैं, आचार वृद्ध हैं, अनेक उच्चपदों पर रह चुके हैं और आज भी ज्ञानपीठ जैसी संस्थाके परामर्शदाता हैं और स्यावाद महाविद्यालयकी महानताकी' स्थापना तो पण्डितजीके महान् व्यक्तित्वसे
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