________________
राजकुमार जैसे प्रतीत होते हैं । सक्रियता एवं उत्साहसे भरपूर । राँचीमें हर प्रकारकी सुख-सुविधा होनेपर भी वे अपने सुपुत्रके साथ इसलिए रहना पसन्द नहीं करते थे कि गंगाजलसे पूत काशी नगरीकी प्रेरणादायक सक्रियता वहाँ नहीं है। इस योगी पुरुषने भदैनी घाटपर आसन जमाकर जो बरसों तक धूनी रमाई है, उससे विलग कैसे हुआ जा सकता है ? . हमारा सौभाग्य है कि ऐसी निस्पृह आत्मा हमारे बीच मौजूद है । हम उनके शान्तिपूर्ण दीर्घ जीवन की कामना करते हैं । उनके चरणोंमें विनम्र शतशः प्रणाम ।
गवेषक पंडितजी
___ डॉ० प्रभाकर नारायण कवठेकर, कुलपति, उज्जैन वि० वि० भारतीय साहित्य और संस्कृतिके क्षेत्रमें अनेक विद्वानोंने अपने शोधपूर्ण लेखों तथा ग्रन्थोंके द्वारा महती सेवा की। उनमें वाराणसीके पण्डित कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीका नाम उल्लेखनीय है।
प्रारी भक दिनों में भारत विद्याकी किसी भी शाखामें कार्य करते समय संस्कृतिके कतिपय ग्रन्थोंका ही आधार दिया जाता था किन्तु बादमें यह परिस्थिति नहीं रही। भारत विद्याका क्षेत्र दिनोंदिन व्यापक होता गया। एक ओर जहाँ बौद्ध साहित्यका विश्लेषण होने लगा, वहीं दूसरी ओर जैन आगम ग्रन्थों तथा विभिन्न प्रकारके साहित्य पर गवेषणा होने लगी। इसका परिणाम यह हुआ कि जैन साहित्यका भी अध्ययन व्यापक दृष्टिसे विद्वानों द्वारा होने लगा।
मेरी मान्यता है कि जैन साहित्यमें आज भी शोधकार्यके लिए प्रचर सामग्री है। साहित्यकी विभिन्न विधाओंमें जैन साहित्यकारोंका अपना योगदान रहा है। साहित्यको हो लीलिए, मैं समझता हूँ कि धार्मिक कथाओंके साथ-साथ लौकिक कथाओंका भी उपयोग जैन साहित्यमें दिखाई देता है । जैन साहित्य लोक साहित्यसे जुड़ा हुआ रहा है। लोक साहित्यकी मार्मिकता जैन साहित्यके अन्तर्गत समाविष्ट कथाओंमें मिलती है।
मैं समझता हूँ कि पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्री जैसे विद्वानोंका इस दिशामें किया हुआ कार्य महत्त्वपूर्ण है । मैं भगवान् महावीरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह पण्डितजीको दीर्घायु प्रदान करें।
व्यक्ति नहीं, संस्था
डॉ. प्रभुदयाल अग्निहोत्रो, भोपाल पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री व्यक्ति नही, संस्था है। वे प्राचीन भारतीय परम्पराके कुलगुरु हैं। उन्होंने दो पीढ़ियोंका प्रत्यक्ष निर्माण किया है और अनेक भावी पीढ़ियोंके नैतिक एवं आत्मिक स्तरको ऊँचा उठानेके लिये विपुल साहित्यकी सृष्टि कर निःसंगभावसे उसे समाजको सौंप दिया है। इस पद्धतिके प्राचार्य अब विरल होते जा रहे हैं। ऐसे बहश्रत, बहुशः तपःपूत मनीषियोंका जितना अभिनन्दन होगा, समाज उतना ही ऊपर उठता जायगा । मैं पण्डितजीके शताधिक जीवनकी कामना करता हूँ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org