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हिंदी या 'खडी बोली' जिस में आजकल उपन्यास, गल्प, नाटक आदि लिखे जाते हैं, तथा जो पत्र पत्रिकाओं में व्यवहृत होती है, का जन्म आज से कोई डेढ सौ बरस पहले हुआ । इस ने निश्चित और परिच्छिन्न रूप तो अभी वीसवीं सदी में धारण क्रिया है ।
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(२) तीस चालीस बरस पहले यू० पी०, पंजाब और मारवाड़ में साधु महात्मा अपना उपदेश हिंदुस्तानी भाषा में देते थे, जिस में वे अपनी रुचि या परिस्थिति ( शिक्षा, भ्रमण, देश, परिषदा आदि) के अनुसार दूसरी भाषाओं का मिश्रण कर देते थे। जब कभी उन को गद्य लिखना होता था तो भी वे इसी भाषा में लिखते थे । शिक्षा के प्रचार से अब इस प्रकार की मिश्रित हिंदी का व्यवहार घटता जाता है ।
(३) महाराज साहिव ने प्रारम्भिक शिक्षा पंजाब में पाई थी परन्तु उच्च शिक्षा के लिये उन्हें जयपुर, आगरा अजमेर, जोधपुर आदि नगरों में देर तक रहना पड़ा * । श्वेताम्बर संप्रदाय का ज़ोर मारवाड़ गुजरात में होने से अन्य देशों में रहने वाले श्वेताम्बर जैनों की भाषा में भी गुजराती मारवाडी के प्रचुर प्रयोग मिलते हैं ।
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* देखिये - तस्वनिर्णय प्रासाद-जीवन चरित -पृ० ४० ---
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