________________
भूमिका है । सम्बन्धियों के लड़के हमारे यहाँ रहकर, पढ़ते हैं। बाहर से लोग आते-जाते हैं। इतने मनुष्यों का भोजन रोज वह गत पचास वर्षों से बनाती है परन्तु कभी परिश्रम की शिकायत न की। हम लोग निरामिष है । उसका सादा भोजन स्वादिष्ट एवं रुचिकर होता है।
आधुनिक महिलायें इसे, जड़ता प्रतिक्रिया वादिता और दकियानूसी मानेगी। परन्तु इस परम्परा में अमोघ शक्ति है । इसे भारतीय नारियों ने लाख-लाखों वर्षों से भारत की इस अमोघ शक्ति को बचा रखा है। उसने उन्हें शक्ति तो दी है देश को भी शक्तिहीन होने से बचाया है ।
उसे लगभग आठ वर्षों से पेट में टघूमर था। उसने कालान्तर में कैन्सर का रूप ले लिया। सितम्बर सन् १९७६ ई० में उसे कुछ दर्द मालूम हुआ। रामकृष्ण मिशन काशी में उसे दिखाया। कैन्सर की बात मालूम हुई। उससे न कहकर, स्पताल में भरती होने की बात कही गयी। वह स्पताल में भरती होने से बचने लगी। घर का काम-काज यथावत् करती रही । स्पताल में जाने का दिन निश्चित हो गया। उसने दो दिनों का समय और मांगा।
गंगा स्नान करने गयी। देवताओं का दर्शन किया। गोदान किया। अन्नदान किया । गृहस्थी में जिसका जो कुछ देना-पावना था समाप्त किया। स्पताल में भरती होने के दिन पूर्ववत् भोजन बनाया
और लोगों को खिलाया। आपरेशन होने के एक दिन पूर्व, मैं उससे मिलने गया। उसने प्रणाम कर, गलतियों के लिए क्षमा मांगा। मैंने बहुत पूछा। कोई इच्छा है ? उसने केवल यही कहा । हमारी कोई इच्छा नहीं है । कुछ रुपया रखा है । उससे क्रिया-कर्म करा दीजिएगा?
सितम्बर १४ सन् १९७६ का दिन था। तीन दिनों से लगातार घोर वर्षा हो रही थी। बादल गरज रहे थे। बिजली कड़क रही थी। किसी को उसके जीने की आशा नहीं थी। ज्योतिषियों ने, हस्त रेखाविदों ने, जो अपने कुटुम्ब के हित चिन्तक थे, विज्ञ थे, आशा त्याग दिये थे। मैंने न आशा त्यागा था। न निराश हुआ। आपरेशन के समय वह शान्त थी। एक बार समझ लिया गया। वह आपरेशन टेबुल पर अन्तिम स्वाँस ले लेगी। किन्तु कुछ ही समय पश्चात् उसमें नव शक्ति उत्पन्न हो गयी। सफल आपरेशन हुआ। लगभग दो किलों का पत्थर जैसा कठोर मांस का लोथा पेट से निकला । बच्चेदानी में कैंसर फैल चुका था। वह भी साफ किया गया ।
डाक्टरों को आशा नहीं थी। वह जीवित रह सकेगी। किन्तु कुछ दिनों में आशातीत सुधार होने लगा। एक प्रतिशत भी किसी प्रकार का शारीरिक उत्पात नहीं हुआ। इन सारी परिस्थितियों में न तो वह घबड़ाई न उसे चिन्ता हुई । वह जीवित रहेगी या मरेगी। स्पताल में भरती होने के दिन से प्राइवेट केबिन में मेहतारानी, भंगी सबका आना बन्द हो गया। घर के ही लोग स्नानघर, आदि साफ करते थे । किसी गैर हिन्दू तथा अस्पृश्य दाई का आना वजित था।
बात यहाँ तक बढ़ गयी थी। कुछ दाइयाँ दवा पिलाने के पहले कहा करती थी-वे ब्राह्मणी है। तथापि उसने स्पताल का जल ग्रहण नहीं किया। गंगा जल आता था। वही पीती थी। पका अन्न बिना स्नान किये कैसे खाया जाता अतएव फल ही एक मात्र आहार रह गया । डाक्टरों का कोई भी आदेश इस दिशा में कार्य न कर सका । आज यह भूमिका लिखते समय वह स्वस्थ है । चलती है। घूमती है । डाक्टरों के लिए यह स्वास्थ्य लाभ आश्चर्य का विषय है । अनुसन्धान का विषय है। उसके लिए भगवान की शक्ति है। जिस पर उसे अटूट विश्वास है। स्पताल की कोई भी दाई या व्यक्ति उसके स्पर्शा-पृश्य, खान-पान आदि से कभी नाराज नहीं हुआ। परिस्थितियों में अडिग रहना, स्वतः महान् शक्ति की परिचायक है। वह दूसरों के आदर का कारण बन जाता है।