Book Title: Jain Raj Tarangini Part 1
Author(s): Shreevar, Raghunathsinh
Publisher: Chaukhamba Amarbharti Prakashan

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Page 22
________________ भूमिका १३ एक त्यागी : अलग रहता है। सन् १९२१ १० कहीं ऊँचा होता श्रीमहावीर त्यागी से काशी में सम्पर्क हो कोई घर-गृहस्थी त्यागने से त्यागी नहीं होता । सुस्थिर गृहस्थ, सन्त, विरागी, वनवासी से है। वह सांसारिक मायाजाल में रहते, पद्मपत्र तुल्य माया जल से परिचय होने के पूर्व उनके ज्येष्ठ भ्राता श्री धर्मवीर त्यागी से गया था। वह गणित के विद्वान है। प्रथम श्रेणी में विश्वविद्यालय से पास कर गान्धी जी के असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित हो गये थे। तत्कालीन विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ स्व० डॉ० गणेश प्रसाद के प्रिय शिष्यों में है । विद्यालय त्याग के पश्चात् उन्होंने पुनः अध्ययन नहीं आरम्भ किया । श्री महावीर त्यागी से मेरा परिचय सन् १९२६ ई० में हुआ। कांग्रेस में हम दोनों ही कार्य करते ये वह देहरादून निवासी थे वहीं उनका कार्य क्षेत्र था। उत्तर प्रदेश की दो विरोधी सीमाओं पूर्वपश्चिम में रहने पर भी हमलोगों का सम्पर्क प्रदेशीय कमेटियों तथा अखिलभारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशनों में हो जाया करता था। हम दोनों गान्धी बादी थे। अतएव यह मित्रता कभी शिथिल नहीं हुयी । संसद में आने पर हमारा कार्य क्षेत्र और विस्तृत हो गया । त्यागी जी का जीवन उनके नाम के अनुरूप है। दिसम्बर ३१ सन् १८९९ ई० में उनका जन्म हुआ था। तत्पश्चात् देहरादून, हो गया । सन् १९२० ई० में प्रथम विश्वयुद्ध के सम्बन्ध में पूर्वी इरान में से उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के लिए सेनावृत्ति से हुआ सैनिक सेवा से उन्हें निवृत कर उनकी मासिक वृत्ति, से निर्वासित कर दिया गया । लगभग साढ़े सात वर्ष उन्होंने देश के लिए कारावास का जीवन व्यतीत ग्राम धनवरसी, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में रैन बसेरा में उनका आवास सैनिक अधिकारी थे। वहीं इस्तीफा दे दिया। उनका कोर्ट मार्शियल संचित धन आदि जब्त कर बलूचिस्तान किया हैं । इनकी पत्नी तथा कन्या ने भी आन्दोलन में भाग लेकर, जेल जीवन विधान सभा के सात वर्ष सदस्य रहने के पश्चात् भारतीय संविधान सभा के पत्नी को भी विधान सभा की सदस्या होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। संसद के सदस्य निरन्तर बने रहे। केन्द्रीय भारतीय विभागों के मन्त्री सन् १९५२ से १९६६ तक बने रहे मन्त्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया । व्यतीत किया है । उत्तर प्रदेश सदस्य चुने गये । उनकी स्वर्गीय उस समय से सन् १९७६ तक सरकार में राजस्व, सुरक्षा, पुनर्वास आदि अनेक ताशकन्द समझौता से सहमति न होने के कारण परिहास प्रिय तथा हाजिर जवाब एवं दूरदर्शी कोई उनकी ओर उँगली आजतक नहीं उठा 3 उनके जैसा, त्यागी निर्भीक, स्पष्टवक्ता, शिष्ट, होना दुर्लभ है। लम्बे राजनीतिक एवं विधायकत्व काल में सका। वह गरीब के गरीब रह गये । उनका दामन गन्दा नहीं हुआ । उनका जीवन कलंक कालिमा से रहित है सबसे बड़ी बात उनका अपने ऊपर स्वयं अनुशासन है। अपने ५० वर्षों के लम्बे काल में उनमें किसी प्रकार क्या चारित्रिक दोष मैंने नहीं देखा । मित्रधर्म पालन जानते हैं। मित्रों ने उनका साथ त्याग दिया परन्तु उन्होंने कभी मित्रों का साथ नहीं त्यागा । उनके रहन-सहन व्यवहार आचार-विचार में परिस्थितियों ने, पदों ने कभी अन्तर नहीं आने दिया । जन्मजात शुद्ध शाकाहारी हैं। जिसके कारण हमारी उनकी मित्रता अनायास हो गयी । , उनके जैसे दृढ़ संकल्प मनुष्य कम मिलते हैं। भारत विभाजन के समय जिस समय समस्त देश साम्प्रदायिकता की अग्नि में झुलस उठा उस समय उन्होंने सम्प्रदायों में शांति स्थापनार्थ भारत में स्वयं सेवकों का विशाल संगठन किया, जो त्यागी पुलिस फोर्स के नाम से प्रसिद्ध हो गया। उन्हें राजनीति में दवन्दियों के कारण वह स्थान नहीं मिल सका, जिसके वे पात्र थे और हैं। ,

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