________________ ___ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 21 के बाद शुद्ध जलसे अभिषेक करे उस वक्त दिल में जन्माभिषेक की भावना करे। जलाभिषेक में भावना और जयणाबालत्तणंनि सामिय, सुमेरुसिहरंमि कणयकलसेहिं। तियसासुरेहिं पहविओ, ते धन्ना जेहि दिट्ठोसि // 1 // ___“हे प्रभो ! बचपन में मेरुशिखर पर 64 इंद्रोंने सुवर्ण कलशोंसे आप का अभिषेक किया उस समय जिन्होंने आपका दर्शन किया वे धन्य हैं / " इस भावना से प्रक्षालन करे, यहां ध्यान रहना चाहिये कि भगवान् के शरीर पर कहीं केशर चिपक गया हो तो धीमे हाथ से या अंगलूणे से साफ करे वालाकुंची को अधिक न घिसे, कारण के उससे मूर्ति पर सदा घसारा लगने से किसी समय मूर्ति के खड्डे होने का संभव है, हां अगर किसी जगह हाथ या कपडे से भी केशर रह जाता हो तो उस जगह अवश्य वालाकुंचीका उपयोग कर सकते हैं / आज कल कई जगह देखा गया है कि मंदिर के भाडुती पूजारी पूजाविधिका पूरा रहस्य न समझने से वालाकुंची से भगवान पर टूट पडते हैं , जल छिडक कर खूब घिसने लग जाते हैं, कई जगह श्रावक लोग भी जानकारी न होने से इसी तरह वालाकुंची का उपयोग करते हैं यह सब अविवेक है। पूजा करने वालों को चाहिये कि ऊपर लिखे मुताबिक जहां जरूरत हो वहीं वालाकुंची का उपयोग करें, संक्षेप में कहना यही है कि बडी जयणा के साथ जल से भगवान् का प्रक्षा