________________ 1 देवदर्शनविधि ललाट में तिलक न किया हो तो तिलक करे फिर आठ पडका मुखकोश बांध कर दूसरी बार 'निसीही' कह कर गूढ मंडप में जा घुटने टेक कर तीनवार नमस्कार करे, फिर मूल गभारे में जावे, प्रथम मूलनायक भगवान् पर अगले दिन के चढे हुए पुष्पादि निर्माल्य मोरपीछ से प्रमार्जन करे, इसी तरह आसपास के बिंबों पर प्रमार्जन करे / बादमें पंचामृत से (दही दूध घी शक्कर और जल से) प्रक्षालन (पखाल) करने 1 यहांपर ललाट के सिवाय अपने शरीर के दूसरे अंगउपांग-मस्तक-कान-गला-हाथ आदि पर कितनेक लोग केशर का तिलक करते हैं लेकिन यह सिर्फ देखादेखी की रूढि है, पूजा की विधि में ऐसा लेख नहीं है, पूजा करने वालों को चाहिये के ऐसी रूढि पर ध्यान न देकर मूल बात पर खयाल रक्खे / ललाटमें जो केशर का तिलक किया जाता है उसके लिये केशर साधारण खाते का होना चाहिये, मंदिर का उपयोग में नहीं आ सकता / मंदिर खाते का केशर सिर्फ भगवान् की पूजा में ही काम आता है। कितनीक जगह देखा जाता है कि जो मंदिर खाते का केशर घीस कर भगवान् की पूजा के लिये तय्यार किया जाता है, उसीसे अपने ललाट में भी तिलक करते हैं, परंतु उस में देवद्रव्य का दोष लगता है। हां अगर पूजा करने वाले महाशय अपने घर का ही केशर पूजा के वास्ते ले जावे तो वह केशर अपने तिलक में और पूजा में दोनों जगह काम आ सकता है, वहां देवद्रव्य का दोष नहीं लगता / तिलक के लिये केशर दूसरी वाटकी में ले लेना चाहिये।