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अंबड़ ने कहा, मैं प्राण देकर भी आपकी आज्ञाओं को पूरा करूंगा। अंबड़ के साहस और संकल्प से प्रसन्न होकर गोरखयोगिनी ने उसे सात निर्देश दिए। अंबड़ ने क्रमशः सातों आदेशों का पालन किया। वे आदेश इतने कठिन और दुःसाध्य थे कि साधारण व्यक्ति उन्हें पूरा करने की कल्पना भी नहीं कर सकता। परन्तु अम्बड़ धुन का धनी था। अनेक बार उसका जीवन विकट बाधाओं से घिरा, अनेक बार वह मृत्युमुख में जाकर भी अपने धैर्य, साहस और पुण्य के बल पर जीवित लौट आया। गोरखयोगिनी के निर्देशों को पूरा करते हुए अम्बड़ को अकूत सम्पत्ति प्राप्त हुई। सहस्रों विद्याओं का वह स्वामी बना। बत्तीस श्रेष्ठ सुन्दर राजकुमारियों और कुमारियों से उसने पाणिग्रहण किया। अनेक देशों का वह राजा भी बना।
समृद्धि और सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर आरूढ़ होकर भी अम्बड़ में दया, कोमलता, भद्रता, विनम्रता आदि मानवीय गुण पूर्वापेक्षया प्रखर से प्रखरतर बनते रहे। उसने केशीकुमार श्रमण से श्रावक के बारह व्रत अंगीकार किए। कालान्तर में उसने कई बार भगवान महावीर के भी दर्शन किए। एक बार उसने भगवान महावीर से अपने भविष्य के बारे में पूछा। भगवान ने फरमाया, अम्बड़! तुम्हारा भविष्य समुज्ज्वल है। आगामी चौबीसी में तुम देव नामक बाईसवें तीर्थंकर बनोगे। अपना समुज्ज्वल भविष्य सुनकर अम्बड़ गद्गद् हो गया। अन्तिम समय में अम्बड़ ने अपना साम्राज्य (रथनूपुर) अपने ज्येष्ठ पुत्र कुरुबक को सौंप दिया। श्रावक धर्म का उत्तम-रीति से पालन करते हुए वीर अंबड़ देहोत्सर्ग कर स्वर्ग में गया।
-अम्बड़ चरित्त (अमर सुन्दर सूरि) अंबड़ संन्यासी ___ महावीरकालीन एक महान संन्यासी। संन्यासी होते हुए भी वह बारहव्रती श्रावक था। बेले-बेले पारणा करता था। तप के प्रभाव से उसे अनेक लब्धियां प्राप्त हो गई थीं। वैक्रिय लब्धि, अवधिज्ञान लब्धि और सौ घरों का भोजन पचा सके, ऐसी लब्धि उसे प्राप्त थी। वह एक ही समय में सौ स्थानों पर दिखाई दे सकता था और मनचाहे रूप धारण कर सकता था। उस युग में उसका विशेष सम्मान था। उसके सात सौ शिष्य थे। सभी गुरु के अनुगामी बनकर श्रावक धर्म का पालन करते थे।
अंबड़ और उसके शिष्य व्रत-रक्षा में पूर्ण सुदृढ़ थे। प्राण देकर भी वे अपने व्रतों का पालन करते थे। किसी समय अम्बड़ अपने सात सौ शिष्यों के साथ कपिलपुर से पुरिमताल नगर जा रहा था। प्रचण्ड गर्मी थी। संन्यासी मार्ग भूल गए और एक भयानक जंगल में जा पहुंचे। प्यास से उनके कण्ठ जल रहे थे। पास ही गगा नदी बह रही थी। पर वे अदत्त के त्यागी थे। वहां कोई व्यक्ति न था जो उन्हें जल पीने की आज्ञा देता। उन्होंने कछ देर प्रतीक्षा की पर कोई न आया। उन्हें लगा कि अब प्राण बच पाने संभव नहीं हैं। अंबड के निर्देश पर सभी शिष्यों ने गंगा की रेत में बिस्तर लगा लिए और आमरण अनशन कर लिया। कुछ ही देर बाद उन सभी का देहान्त हो गया। अम्बड़ सहित सभी शिष्य देह त्याग कर पांचवें स्वर्ग में गए।
अंबड़ महाविदेह में जन्म लेकर सिद्ध होगा। अकंपित (गणधर)
विमलापुरवासी ब्राह्मण देव और उसकी पत्नी जयन्ती के अंगजात तथा तीर्थंकर महावीर के ग्यारह गणधरों में आठवें। अपापा नगरी में सोमिल ब्राह्मण द्वारा आयोजित महायज्ञ के याज्ञिकों में प्रमुख । इन्द्रभूति गौतम आदि की तरह ही वे भी महावीर को शास्त्रार्थ में परास्त करने के लिए उनके पास पहुंचे। महासेन उद्यान में समवसृत महावीर के इस रहस्योद्घाटन के साथ ही कि वे 'नरक के अस्तित्व-नास्तित्व' के संदर्भ
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