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जन्म लेगी। वहां उसे सद्धर्म की प्राप्ति का योग प्राप्त होगा । तब उसकी विकास यात्रा का शुभारम्भ होगा । कालान्तर में वह महाविदेह क्षेत्र से सिद्ध होगी।
अंजू का जीवन वृत्तान्त सुनकर गौतम स्वामी समाधीत हो गए और तप व संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । - विपाक सूत्र
अंधकवृष्णि
हरिवंशीय एक प्रतापी राजा, मथुरा नरेश सूर का पौत्र और सौरीपुर नरेश महाराज सौरि का पुत्र । समुद्रविजय, वसुदेव आदि उसके दस पुत्र थे जो दशार्ह कहलाए। उसकी दो पुत्रियां थीं- कुंती और माद्री । जैन धर्म के बाईसवें तीर्थंकर अरिहंत अरिष्टनेमि अंधकवृष्णि के पौत्र और समुद्रविजय के पुत्र थे । वासुदेव श्री कृष्ण दशम दशार्ह वसुदेव के पुत्र थे । अंधकवृष्णि की पुत्री कुंती का पाण्डु से विवाह हुआ और युधिष्ठिर, अर्जुन तथा भीम उसके पुत्र हुए।
वृष्ण अंधकवृष्ण के चचेरे भाई थे। उनके दो पुत्र थे- उग्रसेन और देवसेन । उग्रसेन के दो पुत्र हुए-कंस और अतिमुक्त । देवसेन की एक पुत्री थी - देवकी । इसी देवकी से वासुदेव श्री कृष्ण ने जन्म लिया था। समय साथ-साथ महाराज सूर का परिवार अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त हुआ । अरिष्टनेमि, कृष्ण, बलभद्र, गजसुकुमाल जैसे परम पुरुष इसी कुल परम्परा में पैदा हुए थे।
- हरिवंश पुराण
अंब ऋषि
एक सदाचारी ब्राह्मण जो पत्नी की मृत्यु के बाद संसार से विरक्त बन गया और अपने पुत्र निम्बक के साथ श्रमणधर्म में प्रव्रजित हो गया। निम्बक अविनीत था । उसे पुनः पुनः संघ और सिंघाड़ों से निकाला गया । अम्बऋषि को भी पुत्रमोह के कारण पुत्र के साथ ही यत्र-तत्र भटकना पड़ा। आखिर अम्बऋषि निम्बक को समझाने में सफल हुआ और उसकी प्रार्थना पर उसे और निम्बक को पुनः आचार्य श्री ने संघ में सम्मिलित कर लिया। (देखिए - निम्बक)
अंबड़ वीर
अढ़ाई हजार वर्ष पूर्व इस नाम के दो व्यक्ति हुए, दोनों में पर्याप्त समानताएं होते हुए भी यह सहज सिद्ध है कि ये दोनों व्यक्ति अलग-अलग थे। एक थे वीर अंबड़ और दूसरे थे अंबड़ संन्यासी । नाम और काल की साम्यता होने से कई लेखकों ने अन्वेषण / अनुसंधान पर ज्यादा ध्यान न देकर दोनों अंबड़ों के जीवन की घटनाओं का सम्मिश्रण कर दिया। ऐसा होना इसलिए भी अस्वाभाविक नहीं था कि लेखकों का लक्ष्य ऐतिहासिक नहीं बल्कि जीवन और दर्शन की महत्ता का प्रतिपादन करना था ।
प्रस्तुत वीर अंबड़ अपने समय का एक अद्भुत साहसी, परम पराक्रमी और असंभव प्रायः कार्यों को सहज ही संभव कर दिखाने वाला पुरुष था । उसका जन्म एक निर्धन परिवार में हुआ था । आजीविका के साधन अंबड़ के पास नहीं थे। पर अंबड़ अंतःप्रेरणा से इस बात को जान चुका था कि धन जीवन का अनिवार्य
है और उसके बिना जीवन को सुगमता से नहीं जीया जा सकता। उसने धन कमाने का निश्चय किया । पुण्ययोग से उसका सम्पर्क गोरखयोगिनी से हुआ। उसने गोरखयोगिनी से कहा कि वह निर्धन है और धन चाहता है। गोरखयोगिनी युवक अंबड़ के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई। उसने कहा, यदि तुम मेरी सात आज्ञाओं का पालन करोगे तो न केवल तुम्हारी निर्धनता दूर हो जाएगी बल्कि तुम विश्व के सर्वाधिक धनवान और बलवान व्यक्ति बन जाओगे, साथ ही बहुत बड़े साम्राज्य का स्वामित्व भी तुम्हें प्राप्त होगा । ••• जैन चरित्र कोश
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